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गुजरात चुनाव बाद नई पारी शुरू करेंगे शरद यादव

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नई दिल्ली| गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव औपचारिक रूप से अपनी नई पार्टी की शुरुआत करेंगे। पार्टी के नाम और चिन्ह की घोषणा एक सप्ताह के अंदर की जाएगी। यादव का समर्थन करने वाले एक जद-यू नेता ने सोमवार को यह जानकारी दी। पार्टी महासचिव अरुण कुमार श्रीवास्तव ने यहां संवाददाताओं से कहा, यादव के नेतृत्व में जद-यू का एक गुट नवगठित क्षेत्रीय पार्टी राष्ट्रीय ट्राइबल पार्टी के बैनर तले कांग्रेस के साथ गठबंधन में गुजरात की 182 में से सात सीटों पर चुनाव लड़ेगा।

श्रीवास्तव ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के बाद कहा, सभी सात उम्मीदवारों का चुनाव चिन्ह ‘ऑटो रिक्शा’ होगा। बैठक में शरद यादव और पार्टी के राज्यसभा सदस्य अली अनवर भी मौजूद थे।

उन्होंने कहा कि जद-यू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव गुजरात में 4 दिसंबर को इन सात उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे। गुजरात में 9 और 14 दिसंबर को चुनाव होंगे। यह घोषणा शरद यादव और नीतीश कुमार के औपचारिक रूप से अलग होने का प्रतीक है। नीतीश कुमार पर तंज कसते हुए श्रीवास्तव ने कहा, वह भारतीय जनता पार्टी की ‘बी’ टीम बन गए हैं।

श्रीवास्तव ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा नीतीश कुमार के गुट को 17 नवंबर को असली जद-यू के रूप में मान्यता और ‘तीर’ का चुनाव चिन्ह देने के बाद शरद यादव के गुट ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई थी।

श्रीवास्तव ने कहा, चुनाव आयोग के आदेश के बाद गुजरात के चगड़िया के विधायक छोटूभाई ए वासवा ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। शरद यादव गुट ने तमिलनाडु के नेता के. राजशेखरन को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और सासंद नागागौडा को उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया है।

इससे पहले, बैठक में समर्थकों को संबोधित करते हुए शरद यादव ने कहा कि भले ही गुट अदालत में चुनाव आयोग के फैसले खिलाफ लड़े, आप प्रस्तावित पार्टी के माध्यम से राजनीति में आगे बढ़ें। उन्होंने नीतीश कुमार पर बिहार के 11 करोड़ लोगों के विश्वास को तोड़ने का भी आरोप लगाया।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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