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मुख्य समाचार

…तो क्या मान जाएंगे बहुगुणा-हरक!

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हरीश रावत बना रहे बागियों पर दबाव, हॉर्स ट्रेडिंग का खुला खेल, उत्तराखंड में सियासी घमासान, विजय बहुगुणा, रीता बहुगुणा जोशी, बागी विधायक गुड़गांव में पिकनिक

देहरादून। उत्तराखंड में सियासी घमासान जारी है। भाजपा व कांग्रेस के बागी विधायक गुड़गांव में पिकनिक मना रहे हैं तो कांग्रेस समर्थक रामनगर के जिम कार्बेट पार्क में हैं। कांग्रेस हाईकमान ने सियासी और संवैधानिक संकट टालने के लिए रीता बहुगुणा जोशी को बागी विधायकों को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। रीता गुपचुप तरीके से बागियों को मनाने में जुटी हैं। चूंकि विजय बहुगुणा रीता के भाई है तो कांग्रेस की दुहाई देकर उन पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह रावत सरकार के खिलाफ न जाएं उधर, हरक को मनाने के लिए दबाव की रणनीति बनाई जा रही है। हरक समर्थकों पर गाज गिराई जा रही है या फिर उनको धमकाया जा रहा है ताकि हरक रावत किसी तरह से मान जाएं या फिर वोटिंग के दिन सदन में आए ही नहीं।

कांग्रेस व सीएम हरीश रावत सरकार बचाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति अपनाए हुए हैं। रावत ने तुरंत प्रभाव से बागी विधायकों के समर्थकों को पदों से हटाने का काम किया है। रुद्रप्रयाग से लेकर दून तक और जसपुर से लेकर रुड़की तक बागी विधायकों के समर्थकों पर गाज गिर रही है। यह कांग्रेस की दबाव की राजनीति है। इसके अलावा सड़कों पर भी भाजपा के पुतले फूके जा रहे हैं। देहरादून में सोमवार को कांग्रेसियों ने भाजपा का पुतला फूंका। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक सरकार पर संवैधानिक संकट है तो ही। ऐसे में सरकार तभी बच सकती है कि बागियों को दल-बदल कानून के तहत सदस्यता रद्द कर दी जाए या फिर कोई ऐसा तरीका निकले कि बागी वोटिंग के वक्त सदन में ही नहीं रहे। कांग्रेस हाईकमान दोनों ही तरीकों को अजमाने की फिराक में है।

हरीश रावत बना रहे बागियों पर दबाव

हॉर्स ट्रेडिंग का खुला खेल

रविवार को विजय बहुगुणा और हरक दोनों ने ही मीडिया को कहा कि वे कांग्रेसी हैं और कांग्रेसी ही रहेंगे। इसके कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। निश्चित तौर पर आम आदमी पार्टी व अन्य दलों ने इस मुद्दे को भाजपा को घेरने का काम किया है। ऐसे में भाजपा भी किसी तरह के आरोपों से पीछा छुड़ाने में जुटी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने भी कहा है कि कांग्रेस के अंदरूनी मामले में भाजपा को न घसीटा जाए। भाजपा ने कांग्रेस सरकार को नहीं गिराने की कवायद की है। कांग्रेस की आपसी लड़ाई से यह संकट पैदा हुआ है।

समधी प्रेम ने डुबो दी रावत की नाव

सूत्रों के मुताबिक सीएम हरीश रावत ने अपने राजनीतिक सलाहकार रंजीत रावत को सभी महत्वपूर्ण कार्य सौंप दिये। चूंकि रंजीत रावत सीएम के समधी हैं, इसलिए वह उन पर अधिक भरोसा कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि रंजीत रावत ने काबीना मंत्रियों की फाइलों व फैसलों पर भी अडंगा लगाना शुरू कर दिया। यही नहीं आरोप यह भी हैं कि वसूली अभियान की कमान भी उन्हीं के हाथ है। कांग्रेस के अधिकांश विधायक ठेकेदारी का काम करते हैं। आरोप है कि रंजीत इनसे भी कमीशन की मांग करने लगे थे। जहां भी कुछ कमाई के अवसर होते हैं, सीधे तौर पर रंजीत का इन्वाल्वमेंट शुरू हो जाता है। इस कारण भी कांग्रेसी विधायक सीएम से खफा हो गये। कुल मिलाकर विधायकों को लग रहा था कि सीएम ही सब कुछ करवा रहे हैं तो उनका विरोध और मुखर हो गया। वैसे भी उत्तराखंड में विधायकों को विकास से कहीं अधिक कमाई की चिन्ता होती है। ऐसे में जब कमाई प्रभावित हुई तो ऐसी सरकार के मंत्री या विधायक रहने का क्या लाभ। सो बगावत कर बैठे।

बागियों का राजनीतिक भविष्य दांव पर

पुराने कांग्रेसी रहे बागियों को यदि सीएम रावत के तख्ता पलट में कामयाबी नहीं मिली तो उनका राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है। कांग्रेस के जितने भी बागी हैं, उनकी मंशा सरकार गिराना कम और हरीश रावत को बदलना ज्यादा है। इस बात को हरक सिंह रावत के उस बयान से भी बल मिलता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वह कांग्रेस के सच्चे सिपाही है, अदावत तो हरीश रावत से है, इसलिए माना जा रहा है कि बागियों के तेवर ढीले पड़ सकते हैं। वैसे भी हरीश रावत की नजर कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन, शैलेंद्र मोहन सिंघल, उमेश शर्मा काऊ और प्रदीप बत्रा पर है, क्योंकि नौ बागियों में ये चार ही सॉफ्ट टारगेट हो सकते हैं।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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