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दर्शक ‘नीरजा’ जैसी महान कहानियों के समर्थन को तैयार : सह-निर्माता

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फिल्म 'नीरजा', छायाकार अतुल कासबेकर, नीरजा भनोट की बायोपिक, सोनम कपूर की मुख्‍य भूमिका

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फिल्म 'नीरजा', छायाकार अतुल कासबेकर, नीरजा भनोट की बायोपिक, सोनम कपूर की मुख्‍य भूमिका

नई दिल्ली| ‘नीरजा’ से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में उतरे मशहूर छायाकार अतुल कासबेकर का कहना है कि भारतीय दर्शकों की उदार रुचि ने वास्तविक सिनेमा के साथ ही हर प्रकार के सिनेमा के दायरे को बढ़ा दिया है। फिल्म के सह-निर्माता कासबेकर ने कहा, “मुझे लगता है कि दर्शक अब हर प्रकार के सिनेमा के लिए तैयार हैं जो दस साल पहले के सिनेमा से बेहतर हुआ है। आज दर्शक और स्टूडियो अच्छी कहानी का समर्थन करने के लिए तैयार हैं। नीरजा भनोट की कहानी एक महान कहानी है।” नीरजा भनोट ने अपह्रत किए गए विमान पैनएम की उड़ान संख्या 73 में सवार यात्रियों की जान बचाई थी। उन पर बनी बायोपिक ‘नीरजा’ में सोनम कपूर ने साहसी युवती नीरजा की भूमिका निभाई है। कासबेकर ने कहा कि नीरजा का परिवार पिछले 30 वर्षो से उन सभी लोगों को ‘ना’ कह रहा था, जो उनकी जिंदगी पर कहानी बनाना चाहते थे। लेकिन उन्हें लगा कि ‘नीरजा’ के निर्देशक राम माधवानी नीरजा की कहानी के साथ इंसाफ करेंगे।

नीरजा भनोट की बायोपिक में सोनम कपूर की है मुख्य भूमिका

नीरजा की बायोपिक के लिए उनके परिवार ने क्या किसी मुआवजे की मांग की। इस सवाल पर कासबेकर ने कहा, “नहीं, वह केवल इतना चाहते थे कि नीरजा का सम्मान और गरिमा बनी रहे। यह हमारे लिए एक बड़ी जिम्मेदारी थी और मुझे खुशी है कि हम इसे पूरा कर पाए।” कासबेकर ने बताया कि फिल्म के लिए छह महीने से ज्यादा शोध किया गया। उन्होंने कहा, “लेखकों ने उनके भाईयों से ही नहीं, बल्कि जीवित बचे यात्रियों, उनके सहपाठियों, उनके परिवार के सदस्यों, किताबों और उस विमान के अपहरण पर लिखे सामयिक लेखों, बाद में चले अदालती मुकदमों और इसी प्रकार के कई स्रोतों से मदद ली।” नीरजा लगभग 21 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई है और यह 19 फरवरी को रिलीज हुई थी। यह अब तक 32 करोड़ रुपये की कमाई कर चुकी है। ‘नीरजा’ के बाद कासबेकर माधवानी के साथ एक अन्य फिल्म पर काम करने की योजना बना रहे हैं।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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