Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

आध्यात्म

श्रीकृष्‍ण की बुद्धि से ही श्रीकृष्‍ण को जाना जा सकता है

Published

on

Loading

kripalu ji maharaj

अतः बुद्धि की गति ही नहीं है। यदि बुद्धि ग्राह्य भगवान् हो जाय तो बुद्धि को ही भगवान् मानना होगा। किंतु अनेक जीवों ने जाना भी है। वेद कहता है। यथा-

वेदाहमेतं पुरुषं महान्‍तमादित्‍यवर्णं तमसः परस्‍तात् ।

(श्‍ वेता. 3-8)

इसका रहस्‍य यह है कि श्रीकृष्‍ण की बुद्धि से ही श्रीकृष्‍ण को जाना जा सकता है। और वह बुद्धि तभी प्राप्‍त होगी जब जीव, श्रीकृष्‍ण के शरणापन्‍ न होगा। इसी भाव से गीता कहती है। यथा-

तेषां सततयुक्‍तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।

ददामि बुद्धि योगं तं येन मामुपयान्ति ते।।

(गीता 10-10)

अतः हे बुद्धिदेवी! तुम श्रीकृष्‍ण की शरण चली जावो बस- तुम्‍हारा काम बन जायगा।

राधे राधे राधे राधे राधे राधे

श्‍याम समुझ से श्‍याम को, समुझ सके सब कोय।

श्‍याम समुझ तब मिलइ जब, समुझ समर्पित होय।।33।।

भावार्थ- श्‍यामसुन्‍दर की बुद्धि से ही वे समझ में आयेंगे ऐसा समझ कर अपनी समझ (बुद्धि) को श्‍यामसुन्‍दर के चरणों में समर्पित कर देना चाहिये।

व्‍याख्‍या- मायाबद्ध जीवों की बुद्धि मायिक है। माया से ही उत्‍पन्‍ न है। अतः मायिक विषयों का ही आंशिक ज्ञान प्राप्‍त कर सकती है। आंशिक इसलिये कह रहा हूँ कि पूर्णज्ञान तो तभी कहा जायगा, जब माया के मूल रूप भगवान् श्रीकृष्‍ण का ज्ञान हो जाय।

और ऐसा ज्ञान तभी हो सकता है, जब जीव अपनी बुद्धि को श्रीकृष्‍ण के चरणों में शरणापन्‍ न कर दे। शरणापन्‍ न करने से ही वे अकारण करुण श्रीकृष्‍ण, कृपा द्वारा अपनी दिव्‍य बुद्धि प्रदान कर देंगे।

तभी हम उस श्रीकृष्‍ण बुद्धि से उनको जान सकेंगे। इसी प्रकार उनकी दी हुई दिव्‍य द ृष्टि से ही उनको देख सकेंगे। एवं उनके शब्‍द, स्‍पर्श, रस आदि का अनुभव कर सकेंगे। अन्‍यथा तो अपनी मायिक वृत्ति का ही लाभ पायेंगे। यथा भागवत-

मल्‍लानामशनिर्नृणां नरवरः स्‍ त्रीणां स्‍मरो मूर्तिमान् ,

गोपानां स्‍वजनोऽसतां क्षितिभुजां शास्‍ता स्‍वपित्रोः शिशुः।

मृत्‍युर्भोजपतेर्विराडविदुषां तत्‍त्‍वं परं योगिनां, वृष्‍णीनां परदेवतेति विदितो रङ्गं गतः साग्रजः।।

(भाग. 10-43-17)

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

Published

on

Loading

नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

Continue Reading

Trending