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आध्यात्म

ज्ञानी ब्रह्म में लीन ही होता है

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kripalu ji maharaj

kripalu ji maharaj

तात्‍पर्य यह कि मुक्‍त का पुनर्जन्‍म असम्‍भव है। फिर भी होता है इसका रहस्‍य यह है कि जिस ज्ञानी ने पूर्व में भक्ति विशेष की है उन्‍हीं भक्ति संस्‍कारी मुक्‍तत्‍माओं पर भगवत्‍कृपा हो जाती है सनकादिक (जन्‍मजात परहंस) शुकादिक उदाहरण हैं। जो भी कारण हो किंतु यह तो सिद्ध ही हो गया कि ज्ञानी ब्रह्म नहीं बन जाता, वरन् ब्रह्म में लीन ही होता है। यही मत भक्तिों का भी है।

वेद भी कहता है-‘परात्‍परं पुरुषमुपैति दिव्‍यम्।‘   (मुण्‍डको. 3-2-8)

पुनः ‘निरञ्जनः परमं साम्‍यमुपैति।‘  (मुण्‍डको. 3-1-3)

गीता भी- ‘ मम साधर्म्‍यमागताः’   (गीता 14-2)

अस्‍तु यह भी सिद्ध हो गया कि जीवात्‍मा ही परमात्‍मा नहीं है वरन् अंश है। तथा पृथक् सत्‍ता है। तभी तो ब्रह्म से निकलकर शरीर धारण करता है। जीव में ब्रह्म व्‍याप्‍त है। अतः जीव को ब्रह्म कह दिया गया है। वस्‍तुतः जीव दास ही है।

राधे राधे राधे राधे राधे राधे

कृष्‍ण- कृपा बिनु जाय नहिँ, माया अति बलवान।

शरणागत पर हो कृपा, यह गीता को ज्ञान।। 29।।

भावार्थ- यह माया शक्ति इतनी बलवती है कि शक्तिमान् भगवान् श्रीकृष्‍ण की कृपा के बिना नहीं जा सकती। और यह कृपा भी केवल शरणागत जीव पर ही होती है। यह संपूर्ण गीता का सारभूत ज्ञान है।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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