आध्यात्म
संसारी आनन्द जड़ है
वह ब्रह्म का आनन्द नित्य एवं अनन्त है। जबकि जगत् का आनन्द अनित्य एवं अल्प है। पुनः वह आनन्द चेतन भी है। संसारी आनन्द जड़ है। वह नित्य चेतन ईश्वरीय आनन्द स्वयं ब्रह्म को भी आनन्द का अनुभव कराता है, तथा अन्य प्रपन्न जीवों को भी आनन्द दान कराता है। वह ब्रह्म सत् है। चित् है। आनन्द है। इन तीनों में तीनों का निवास है। जो सत् है, वही चिदानन्द है। जो चित् है, वही सदानन्द है। एवं जो आनन्द है वही सच्चित् भी है।
शक्ति की क्रिया से निर्विशेष वस्तु सविशेष बन जाती है। जैसे कुम्हार की शक्ति से मृत्तिका का घट, सुराही आदि रूप बन जाती है। सब से अन्तरंग पराशक्ति से ही ब्रह्म, साकार बन जाता है। इसी से श्रुतियों ने ब्रह्म के दो स्वरूप बताये हैं। यथा-
द्वे वाव ब्रह्मणो रूपे मूर्तं च।
(बृहदा. 2-3-1)
स्वयं शंकराचार्य ने भी कहा है। यथा-
मूर्तं चैवामूर्तं द्वे एव ब्रह्मणो रूपे।
इत्युपनिषत् तयोर्वा द्वौ भक्तौ भगवदुपदिष्टौ।
(शंकराचार्य)
इसी परा या स्वरूप शक्ति की क्रिया से चैतन्य आनन्द का अनुभव जीवों को भी कराया जाता है। अतः वेद कहता है। यथा-
रसो वै सः। (तैत्तिरीयो. 2-7)
इस रस शब्द के 2 अर्थ होते हैं। 1- ‘रस्यते रसः’ अर्थात् जो स्वयं आनन्दानुभव करे। 2- ‘रसयति रसः’ अर्थात् जो अन्य शरणागत जीवों को परमानंद का अनुभव करावे। उसी शक्ति के द्वारा ब्रह्म 3 स्वरूप वाला भी बन जाता है। 1 ब्रह्म। 2- परमात्मा। 3- भगवान्। वेदव्यास कहते हैं। यथा-
वदन्ति तत्तत्वविदस्तत्वं यज्ज्ञानमद्ववय्
ब्रह्मोतिपरमात्मेति भगवानिति शब्द्वते।।
(भाग. 1-2-11)
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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