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आध्यात्म

ब्रह्म प्रमुख रूप से आनन्‍द का ही वाचक है

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kripalu ji maharaj

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तात्‍पर्य यह कि वह एवं उसकी शक्तियाँ इतनी बड़ी (अनन्‍त) हैं कि न तो उनसे बड़ा कोई है, न तो उनके बराबर ही कोई है। कुछ लोग (अद्वैती ब्रह्म में शक्तियाँ ही नहीं मानते। वे लोग ध्‍यान दें। श्रुति कहती है।

यः सर्वज्ञः सर्वविद्वस्‍य ज्ञानमयं तपः

(मुण्‍डको. 1-1-9)

अर्थात् ब्रह्म सर्वज्ञ है। पुनः वही श्रुति स्‍पष्‍ट करती है। यथा-

नायमात्‍मा प्रवचनेन लभ्‍यो न मेधया न बहुनाश्रुतेन।

यमेवैष वृणुते तेन लभ्‍यस्‍तस्‍यैष आत्‍मा विवृणुते तनू ँ स्‍वाम।।

(कठोप. 1-2-23, मुण्‍डको 3-2-3)

अर्थात् वह ब्रह्म जिसका वरण करता है, वही जीव उसे प्राप्‍त करता है। अतः ब्रह्म सशक्तिक एवं सविशेष है। शंकराचार्य ने प्रथम ब्रह्मसूत्र भाष्‍य में लिखा है। यथा-

नित्‍यशुद्धबुद्धमुक्‍त स्‍वभावं सर्वज्ञं सर्वशक्ति समन्वितं ब्रह्म।

किंतु पश्‍चात् शंकराचार्य ने मुख्‍यार्थ छोड़ कर लक्षणा वृत्ति का आश्रय लेकर ब्रह्म को निःशक्तिक एवं निर्विशेष माना है। वस्‍तुतः उनका एक ही लक्ष्‍य था कि जीव एवं ब्रह्म का एकत्‍व ही सिद्ध करना है। वेदों में भेदवादिनी एवं अभेदवादिनी दोनों ही प्रकार की ऋचायें हैं। कहीं कहीं तो एक ही मंत्र में दोनों ही प्रकार की ऋचायें हैं। शंकर ने अभेदवादिनी ऋचाओं को ही पारमार्थिक माना एवं भेदवादिनी ऋचाओं को व्‍यावहारिक कह कर टाल दिया। किंतु इस मंतव्‍य में प्रमाण नहीं दे सके। वेद तो कहता है। यथा-

सर्वे वेदा यत्‍पदमामनन्ति।

(कठोप. 1-2-15)

अर्थात् सभी ऋचायें एक सी हैं। वस्‍तुतः दोनों ही प्रकार की ऋचायें पारमार्थिक ही है। किंतु समझने की शक्ति साधारण बुद्धि में नहीं है। बड़ी सीधी सी बात है कि ब्रह्म एवं जीव तथा माया इन तीनों तत्‍वों को भेदवादिनी ऋचायें स्‍पष्‍ट बता रहीं हैं। एवं एकमात्र ब्रह्म को ही अभेदवादिनी ऋचायें स्‍पष्‍ट बता रही हैं। दोनों सही हैं। क्‍योंकि जीव (परा) एवं माया (अपरा) दोनों ही ब्रह्म की शक्तियाँ हैं। शक्ति एवं शक्तिमान् में भेद एवं अभेद दोनों ही माना गया है। अतः कोई विवाद है ही नहीं। अस्‍तु अपनी शक्तियों को द्वारा ही वह निर्गुण निर्विशेष निराकार तथा सगुण सविशेष साकार बनता है। वह ब्रह्म प्रमुख रूप से आनन्‍द का ही वाचक है। साथ में सत्चित् विशेषण युक्‍त भी है। अतः उसे सच्चिदानन्‍द भी कहा जाता है। यथा वेद-

आनन्‍दो ब्रह्मोति व्‍यजानात्। (तैत्तिरीयो. 3-6)

आध्यात्म

आज होगी मां दुर्गा के अष्टम रूवरूप महागौरी की पूजा-अर्चना, इन बातों का रखें ख्याल, मिलेगी विशेष कृपा

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नवरात्र पर्व के आठवें दिन महागौरी की पूजा होती है। महागौरी गौर वर्ण की है और इनके आभूषण और वस्त्र स्वेत रंग के हैं। इनकी उम्र आठ साल की मानी गई है। इनकी चार भुजाएं है और वृषभ पर सवार होने के कारण इन्हें वृषारूढा भी कहा जाता है। सफेद वस्त्र धारण करने के कारण इन्हें स्वेतांबरा भी कहा गया है।

मां महागौरी देवी पार्वती का एक रूप हैं। पार्वती ने भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद उन्हें पति के रूप में पाया था। कथा है कि एक बार देवी पार्वती भगवान शिव से रूष्ट हो गईं। इसके बाद वह तपस्या पर बैठ गईं। जब भगवान शिव उन्हें खोजते हुए पहुंचे तो वह चकित रह गए। पार्वती का रंग, वस्त्र और आभूषण देखकर उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं। महागौरी करुणामयी, स्नेहमयी, शांत तथा मृदुल स्वभाव की हैं। मां गौरी की आराधना सर्व मंगल मंग्लये, शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्रयंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते..। इसी मंत्र से की जाती है। कहा जाता है कि एक बार भूखा शेर उन्हें निवाला बनाने के लिए व्याकुल हो गया पर उनके तेज के कारण वह असहाय हो गया। इसके बाद देवी पार्वती ने उसे अपनी सवारी बना लिया था। मां के आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना करने से धन, सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

अष्टमी के दिन करें कन्या पूजन

नवरात्र पर्व पर दुर्गाष्टमी के दिन कन्याओं की पूजा की जाती है। जिसे कंचक भी कहा जाता है। इस पूजन में नौ साल की कन्याओं की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि महागौरी की उम्र भी आठ साल की थी। कन्या पूजन से भक्त के पास कभी भी कोई दुख नहीं आता है और मां अपने भक्त पर प्रसन्न होकर मनवांछित फल देती हैं।

महागौरी की पूजा का महत्व

आदि शक्ति देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप की पूजा करने से सभी ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। महागौरी की आराधना से दांपत्य जीवन, व्यापार, धन और सुख समृद्धि बढ़ती है। जो भी देवी भक्त महागौरी की सच्चे मन से आराधना व पूजन अर्चन करता है उसकी सभी मुरादें पूरी करती हैं। पूजा के दौरान देवी को अर्पित किया गया नारियल ब्राम्हण को देना चाहिए।

कन्या पूजन विधि

नवरात्रि की अष्टमी के दिन कन्याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें।

इसके बाद कन्याओं का पूरे परिवार के साथ चावल और फूल के साथ स्वागत करें।

नवदुर्गा के सभी नामों के जयकारे लगाएं। फिर कन्याओं को आरामदायक और साफ जगह पर बैठा दें।

सभी कन्याओं के पैर धोकर अच्छे से साफ करें। फिर सभी का कुमकुम का टिका लगाएं।

इन सभी कन्याओं को मां भगवती का स्वरुप समझकर उन्हें भोजन कराएं।

अंत में उन्हें दक्षिणा और कुछ उपहार देकर ही घर से विदा करें।

कन्या पूजन में इन बातों का रखें खास ख्याल

ध्यान रखें की कन्या पूजन में 9 कन्याओं के साथ 1 बालक को जरूर बैठाएं। बालक को भैरव का रूप माना जाता है।

कन्याओं के तुरंत बाद लाकर उनके हाथ पैर जरुर धुलवाए और उनका आशीर्वाद लें।

कुमकुम का तिलक लगाने के बाद सभी कन्याओं को कलावा भी जरुर बांधे।

 

 

 

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