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हैदराबाद : फरार आरोपी सर्जन ने खुदकुशी की

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हैदराबाद| हैदराबाद में सोमवार को कथित तौर पर अपने सहकर्मी पर गोली चलाकर फरार होने वाले एक जनरल फिजिशियन व सर्जन ने शहर के बाहरी इलाके में स्थित अपने फार्म हाउस में आत्महत्या कर ली। पुलिस ने कहा कि सर्जन शशि कुमार (40) ने रंगा रेड्डी जिले के मोइनाबाद के नाकापल्ली में स्थित अपने फार्म हाउस में सोमवार देर रात गोली मारकर खुदकुशी कर ली।

पुलिस की एक टीम सोमवार देर रात करीब एक बजे शशि कुमार को सहकर्मी पर गोली चलाने के आरोप में गिरफ्तार करने आई थी, लेकिन वह मृत मिले। पुलिस को घटनास्थल से जहर की एक शीशी भी मिली। पुलिस का मानना है कि आत्महत्या की पहली कोशिश में असफल होने के बाद कुमार ने खुद को गोली मारी होगी।

पुलिस को एक सुसाइड नोट भी मिला, जिसमें कुमार ने दावा किया है कि उन्होंने अपने सहकर्मी उदय कुमार पर गोली नहीं चलाई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि गोली एक अन्य डॉक्टर और उनके साथी साई कुमार ने चलाई थी।

उन्होंने लिखा कि वह स्वयं पर लगे आरोप की वजह से डरकर भागे थे और अब आत्महत्या कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि सोमवार को शहर के हिमायतनगर इलाके में एक कार में गोली चलने की घटना घटी। गोली अस्पताल प्रबंधन को लेकर हुई बहस के दौरान चली। आरोप है कि जनरल फिजिशियन व सर्जन शशि कुमार ने अपनी लाइसेंसी प्वाइंट 32 एमएम रिवॉल्वर से उदय को गोली मारी।

गोली उदय के बाएं कान पर लगी। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी हालत नाजुक बताई गई है।

पुलिस घटना के बाद से ही शशि कुमार की तलाश में थी।

नेशनल

पहले फेज के वोटर ने बिगाड़ा मोदी का मूड

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पार्टीज के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।

जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18वीं लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।

शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकर टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।

फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्योंकि evm खुलने के पहले कोई नहीं जानता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।

दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-

2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा

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