एक बार पुनः खेलते हुये नन्दललन को अपना प्रतिबिंब दिखाई पड़ा। बस फिर क्या था- उसे चिपटाने के लिए बार-बार विशाल बाहों को फैलाने। लगे श्री...
करन चहत आलिंगन, आपुहिँ आपु निहार । जन-मन-मोहन ही नहीं, निज मन-मोहन हार ।।53 ।। भावार्थ- श्रीकृष्ण का माधुर्य रस इतना विलक्षण है कि श्रीकृष्ण स्वयं...
यह ब्रह्म रस रूप में आस्वाद्य एवं आस्वादक दोनों है। पूर्व में बता चुके हैं कि ब्रह्म में अनन्त स्वाभाविक शक्तियाँ होती हैं। अतः स्वाभाविक शक्तियों...
जैसे दीपक प्रभा भी है एवं प्रभावान् भी है । ऐसे ही आत्मा ज्ञाता भी है । एवं ज्ञान स्वरूप भी ।है इसी से वेदों ने...
अर्थात् एक गोपी श्यामसुन्दर के अनन्त सौन्दर्य रसपान में इतनी मुग्ध हो गई कि आँखों में आनन्द के अश्रु आ गये। वह गोपी अपने आनन्द के...
सारांश यह कि हम लोगों ने अनादि काल से अपनी संसारी या मुक्ति सम्बन्धी कामनायें बनाकर अपना वास्तविक स्वरूप भुला दिया। लेना लेना ही सीखा है।...
3.भक्ति सदाचारी तो करता ही है, किंतु दुराचारी को भी अधिकार है यथा- अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् । साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्वयवसितो हि सः।। (गीता. 9-30)...
वस्तुतस्तु भक्ति ही वास्तविक मुक्ति है। यथा- निश् चला त्वयि भक्तिर्या सैव मुक्तिर्जनार्दन (स्कन्द पुराण) अर्थात् श्रीकृष्ण भक्ति ही मुक्ति है। या मुक्तिदायिनी है। अस्तु भक्ति...
किंतु यह भ्रम नहीं होना चाहिये कि भगवान् ही हमारे कर्मों का कर्ता है। भगवान् कर्म करने की शक्ति मात्र देता है किंतु कर्म करने का...
आत्मा बिच परमात्मा, करत निवास सदाय। याते कहुँ कहुँ आत्मा, परमात्मा कहलाय।। 43।। भावार्थ- प्रत्येक जीवात्मा में परमात्मा का नित्य निवास है। अतः वेदों शास्त्रों में...