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मुख्य समाचार

बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारें, आरबीआई को जिम्मेदार ठहराया

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Long queue for noechangeमुंबई। रविवार को छुट्टी का दिन होने के नाते हजारों की संख्या में लोग बैंकों और एटीएम पर 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बदलने और नकदी निकालने के लिए उमड़ पड़े। इंतजाररत लाखों उपभोक्ताओं की पीड़ा को देखते हुए कई बैंकों ने इसके लिए उपाय किए, लेकिन बैंक यूनियन के एक शीर्ष अधिकारी ने भारतीय रिजर्व बैंक को इस समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराया।

आल इंडिया बैंक इम्प्लाइज एसोसिएशन के उपाध्यक्ष विश्वास उटागी ने कहा, सार्वजनिक, निजी, क्षेत्रीय और ग्रामीण बैंकों की देशभर में लगभग 125,000 शाखाएं और आरबीआई के 20 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जहां से सभी स्थानों पर मुद्रा भेजी जाती है। लेकिन यह काम तेजी से नहीं हो रहा है, यद्यपि आरबीआई को प्रिंटिंग प्रेसों से नोटों का पूरा स्टॉक प्राप्त हुआ है।

उटागी ने कहा कि बैंककर्मी 10 नवंबर से ही प्रतिदिन 18 घंटे अथक काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें जनता की भारी भीड़ को संभालना है। उन्होंने कहा, लेकिन आरबीआई से नोटों की अपर्याप्त आपूर्ति के कारण बैंकों को इंतजार करना पड़ रहा है, और इसके कारण उपभोक्ताओं को भी इंतजार करना पड़ रहा है। लेकिन इसका खामियाजा ब्रांच स्तर के बैंककर्मी भुगत रहे हैं। सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि आरबीआई अपना राष्ट्रीय कर्तव्य क्यों नहीं निभा रहा है।

उन्होंने कहा कि दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में स्थिति बदतर है, जहां चंद बैंक शाखाएं हैं और गिने-चुने एटीएम हैं, जिसके कारण लोग पुराने नोट बदल नहीं पा रहे हैं, और बैंक लेन-देन नहीं कर पा रहे हैं। उपभोक्ताओं की भलाई को लेकर चिंतित कुछ बैंकों ने विभिन्न कदम अपनाए हैं, क्योंकि कतारें कुछ और दिन बनी रहने वाली हैं।

एक्सिस बैंक ने अपनी सभी 3,061 शाखाओं पर वरिष्ठ नागरिकों के लिए प्राथमिकता बैंकिंग शुरू की है, धूप में इंतजार कर रहे उपभोक्ताओं के लिए शामियाने लगाए हैं और चाय-पानी के भी बंदोबस्त किए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों ने दक्षिण मुंबई के कुछ हिस्सों में मोबाइल एटीएम शुरू किए हैं, जहां से लोग नकदी निकाल सकते हैं और उसके बाद ये एटीएम दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। इस कदम से बैंक शाखाओं के सामने कतारें कुछ कम हुई हैं।

समस्त महाजन जैसे सामाजिक संगठनों ने कतार में खड़े लोगों के लिए पानी और हल्के नाश्ते बांटने शुरू किए हैं। एक सिख संस्था भी पानी और चाय/काफी मुहैया करा रही है। उटागी ने कहा कि सभी बैंक शनिवार और रविवार को खुले रहे और कई बैंकों ने अगले रविवार को भी काम करने की योजना बनाई है।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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