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विश्व कप : अपने ‘घर’ में आस्ट्रेलिया का दावा सबसे मजबूत

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एडिलेड| आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम ने 23 वर्ष पहले जब मौजूदा चैम्पियन के तौर पर न्यूजीलैंड के साथ आईसीसी विश्व कप की संयुक्त मेजबानी की थी, तब वह अपना खिताब बचाने में असफल रहे थे, लेकिन इस बार अपनी घरेलू परिस्थितियों में चार बार की चैम्पियन आस्ट्रेलियाई टीम कहीं मजबूत दावेदार नजर आ रही है। वास्तव में 14 फरवरी से 29 मार्च के बीच होने वाले आईसीसी विश्व कप-2015 में शीर्ष एकदिवसीय टीम के रूप में प्रवेश करने वाली आस्ट्रेलिया का दावा इस बार सर्वाधिक मजबूत माना जा सकता है।

आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में हुए आईसीसी विश्व कप-1992 में आस्ट्रेलिया नॉकआउट में भी पहुंचने में असफल रही थी। ऐसे में आस्ट्रेलिया पर अपने घर में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव होगा।

पिछले 23 वर्षो में हालांकि बहुत कुछ बदल चुका है और क्रिकेट की दुनिया में आस्ट्रेलिया ने एक नया मुकाम हासिल कर लिया है। सर्वाधिक चार बार विश्व कप खिताब हासिल कर चुकी आस्ट्रेलियाई टीम ने इन वर्षो में अपनी सफलता को बरकरार रखने का भी हुनर सीखा है।

भारत और इंग्लैंड के साथ हाल ही में संपन्न हुई त्रिकोणीय श्रृंखला में चैम्पियन रही आस्ट्रेलियाई टीम ने अपने धुरंधर खेल का प्रदर्शन कर दिया है।

माइकल क्लार्क की चोट हालांकि टीम के लिए इस समय सबसे बड़ी चिंता का सबब है। क्रिकेट आस्ट्रेलिया (सीए) ने क्लार्क को 15 सदस्यीय टीम में शामिल तो किया है, लेकिन साथ ही उन्हें 21 फरवरी तक फिट होने की समयसीमा भी दी है। आस्ट्रेलिया को 21 फरवरी को विश्व कप का अपना दूसरा मैच खेलना है।

क्लार्क की चोट के कारण अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि आस्ट्रेलियई टीम आखिर किसके नेतृत्व में विश्व कप में उतरेगी। क्लार्क की जगह टीम का नेतृत्व संभाल रहे जॉर्ज बेले का फॉर्म भी अभी खराब दौर से गुजर रहा है और अंतिम-11 में उनके बने रहने पर प्रश्नचिन्ह बना हुआ है।

इस बीच स्टीवन स्मिथ की बतौर कप्तान और खिलाड़ी अप्रत्याशित सफलता ने आस्ट्रेलिया के लिए एक नया विकल्प प्रदान किया है, लेकिन फिर भी टीम एक अनुभवी कप्तान के साथ जाना शायद ज्यादा पसंद करेगी।

अनुभव के मामले में निश्चित ही क्लार्क सबसे बेहतर हैं।

आस्ट्रेलिया के पास मजबूत बल्लेबाजी है और डेविड वार्नर, एरॉन फिंच, शेन वाटसन, मिशेल मार्श सहित ग्लेन मैक्सवेल जैसे बल्लेबाज टीम को किसी भी मुश्किल से निकालने का माद्दा रखते हैं।

गेंदबाज के तौर पर मिशेल जानसन, मिशेल स्टार्क और वाटसन टीम का मजबूत पक्ष हैं।

इन सबके बीच हालांकि खिलाड़ियों की चोट ही टीम के लिए बड़ी चिंता का विषय हो सकती है। हाल में तेज गेंदबाज जानसन और जोस हैजलवुड इस समस्या से जूझते नजर आए।

बहरहाल, अगर सभी परिस्थितियों पर नजर डालें तो यह साफ हो जाएगा कि अगर टीम के सभी शीर्ष खिलाड़ी फिट और अपनी लय में रहे तो आस्ट्रेलिया अपनी जमीन पर एक और इतिहास रचने में कामयाब हो सकता है।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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