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नेशनल

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, गर्भपात के लिए पति की सहमति जरूरी नहीं

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में महिलाओं को बड़ा अधिकार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात के लिए किसी महिला को पति की सहमति की जरूरत नहीं है। पत्नी से अलग हो चुके एक पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या फिर गर्भपात कराने का फैसला लेने का अधिकार है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए. एम. खानविलकर की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘पति-पत्नी के बीच खटासभरे रिश्तों के मद्देनजर महिला का गर्भपात का फैसला बिल्कुल कानून सही है।’ इस तरह शीर्ष अदालत ने भी हाई कोर्ट के फैसले से सहमति जताई है।

कोर्ट ने कहा कि महिला मां है और वह वयस्क है, आखिर में कैसे किसी और को उसके लिए फैसला लेने के लिए कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि यहां तक कि मानसिक रुप से विक्षिप्त महिला को भी यह अधिकार है कि वह अपना गर्भपात करा सके।

इस जोड़े की शादी 1994 में हुई थी और 1995 में महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया। शादी में आ रही दिक्कतों के बाद के कारण 1999 से ही महिला अपने पैरंट्स के घर पर रह रही थीं। महिला ने कोर्ट में गुजारा-भत्ता के लिए आवेदन दिया था और कोर्ट के निर्देश के बाद 2002 में पति के साथ पानीपत में रहने लगी। 2003 में जब उन्हें पता चला कि वह फिर से प्रेगनेंट हैं तो उन्होंने संबंध में सुधार की कोई गुंजाइश न देखते हुए गर्भपात करवा लिया।

पति ने अपनी याचिका में पूर्व पत्नी के साथ महिला के माता-पिता, भाई और दो डॉक्टरों पर भी ‘अवैध’ गर्भपात का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता ने बिना उसकी सहमति के गर्भपात कराए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी।

उत्तर प्रदेश

जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं, मुख्तार की मौत पर बोले अखिलेश

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लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी की मौत पर सवाल उठाए हैं। साथ ही उन्होंने इस मामले पर योगी सरकार को भी जमकर घेरा है। उन्होंने मामले की सर्वोच्च न्यायालय के जज की निगरानी में जांच किए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यूपी इस समय सरकारी अराजकता के सबसे बुरे दौर में है। यह यूपी की कानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।

सोशल मीडिया साइट एक्स पर अखिलेश ने लिखा कि  हर हाल में और हर स्थान पर किसी के जीवन की रक्षा करना सरकार का सबसे पहला दायित्व और कर्तव्य होता है। सरकारों पर निम्नलिखित हालातों में से किसी भी हालात में, किसी बंधक या क़ैदी की मृत्यु होना, न्यायिक प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठा देगा।

अपनी पोस्ट में अखिलेश ने कई वजहें भी गिनाई।उन्होंने लिखा- थाने में बंद रहने के दौरान ,जेल के अंदर आपसी झगड़े में ,⁠जेल के अंदर बीमार होने पर ,न्यायालय ले जाते समय ,⁠अस्पताल ले जाते समय ,⁠अस्पताल में इलाज के दौरान ,⁠झूठी मुठभेड़ दिखाकर ,⁠झूठी आत्महत्या दिखाकर ,⁠किसी दुर्घटना में हताहत दिखाकर ऐसे सभी संदिग्ध मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में जाँच होनी चाहिए। सरकार न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर जिस तरह दूसरे रास्ते अपनाती है वो पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी हैं।

सपा प्रमुख ने कहा कि जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं।  उप्र ‘सरकारी अराजकता’ के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। ये यूपी में ‘क़ानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।

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