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मप्र : कॉलेज में सिंधिया को बुलाने पर दलित प्राचार्य निलंबित, राजनीति गरमाई

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भोपाल, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश मेंअशोकनगर जिले के मुंगावली स्थित शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य बी.एल.अहिरवार को महज इसलिए निलंबित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने कालेज के कार्यक्रम में क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को बुला लिया।

क्षेत्रीय सांसद को क्षेत्र के कॉलेजों में जाने का पूरा हक है और कॉलेजों के कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट या मुख्य अतिथि बुलाए जाने का हमेशा से रिवाज रहा है, लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार को सिंधिया का कॉलेज के कार्यक्रम में जाना पसंद नहीं है, क्योंकि वह सांसद तो हैं, लेकिन कांग्रेस के नेता हैं।

क्षेत्रीय सांसद को कार्यक्रम में बुलाने वाले प्राचार्य अहिरवार के निलंबन के आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि ‘उन पर यह कार्रवाई कांग्रेस नेताओं के आने पर की गई है।’

अहिरवार ने गुरुवार को कहा, सिंधिया महाविद्यालय के छात्रों से संवाद करना चाहते थे। वे क्षेत्रीय सांसद हैं, उन्हें नियमों के मुताबिक बुलाया जा सकता था, लिहाजा बुलाया गया। उन्होंने मंगलवार को छात्रों से संवाद किया। अगले ही दिन मेरे निलंबन का आदेश आ गया।

अहिरवार ने आगे कहा, मुझे जो निलंबन आदेश दिया गया है, उसमें सिंधिया का नाम नहीं लिया गया है, बल्कि ‘कांग्रेस नेताओं’ के आने की बात कही गई है। सिंधिया के साथ कुछ कांग्रेसी भी आए हों, तो मैं क्या कर सकता था? आयोजन के दौरान न तो किसी पार्टी के झंडे थे और न ही बैनर। मैं तो यहां चल रही राजनीति के घमासान का शिकार बेवजह बन गया।

प्राचार्य के खिलाफ की गई कार्रवाई की सिंधिया ने निंदा की है। उन्होंने ट्वीट किया, मुंगावली डिग्री कॉलेज के दलित प्राचार्य डॉ़ अहिरवार को बिना किसी नोटिस या ठोस वजह, सरकार ने निलंबित कर अपनी दलित विरोधी मानसिकता उजागर कर दी। असंवेदनशील सरकार का यह एक तानाशाहीपूर्ण आदेश है, जो पूर्वाग्रहग्रस्त और घोर निंदनीय कृत्य है।

उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, क्या एक सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र के महाविद्यालय में बुलाना इतना बड़ा अपराध है कि उस महाविद्यालय के प्राचार्य को निलंबित कर दिया जाए?

वहीं विधानसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने प्राचार्य के निलंबन पर कहा कि आज मध्यप्रदेश शासन-प्रशासन का जो राजनीतिकरण भाजपा कर रही है, वह प्रदेश के इतिहास में कभी नहीं हुआ। मुख्यमंत्री को तत्काल प्राचार्य का निलंबन रद्द करना चाहिए।

नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि भाजपा और उसके मंत्री राजनीति में व्यक्तिगत दुर्भावना से काम कर रहे हैं। इसका शर्मनाक उदाहरण यह घटना है, दूसरी ओर पिछले दिनों भोपाल के राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में भाजपा की पितृ संस्था आरएसएस द्वारा एक कार्यक्रम किया गया। वहां संगठन के झंडे भी लगाए गए जो कदाचार है, मगर तब उच्च शिक्षा मंत्री ने कोई कार्रवाई नहीं की।

भाजपा के प्रदेश महामंत्री बी.डी. शर्मा ने कहा कि सरकारी शिक्षण संस्थान में किसी को भी राजनीति करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। झंडे, बैनर नहीं लगाए जा सकते। जहां ऐसा हो, वहां कार्रवाई आवश्यक है।

यहां बताना लाजिमी होगा कि मुंगावली विधानसभा क्षेत्र के विधायक महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के निधन के चलते इस क्षेत्र में उपचुनाव होना है। यह क्षेत्र सिंधिया के गुना संसदीय क्षेत्र में आता है। उपचुनाव के चलते क्षेत्र में नेताओं की सक्रियता बढ़ी हुई है।

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नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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