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स्वस्थ जीवनशैली अपना कर बचा जा सकता है एनसीडी रोगों से

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नई दिल्ली, 21 सितम्बर (आईएएनएस)| आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 61 प्रतिशत मौतें गैर-संचारी रोगों यानी एनसीडी के कारण हो रही हैं। इनमें हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, इनमें से लगभग 23 प्रतिशत लोग इन रोगों के साथ-साथ समय से पहले मृत्यु के खतरे में भी जी रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, देश में इन गंभीर परिस्थितियों के खिलाफ काम में खास प्रगति नहीं हुई है। तेजी से शहरीकरण के कारण, भारत में गैर-संचारी रोग पैटर्न बढ़ रहा है।

एनसीडी के बोझ के लिए जिम्मेदार चार जोखिम वाले कारक तंबाकू, दूषित आहार, शारीरिक निष्क्रियता और शराब की अत्यधिक खपत है। कुछ अन्य प्रमुख कारकों में मोटापा, रक्तचाप, रक्त शर्करा और रक्त कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि शामिल हैं। ये सभी व्यवहार जोखिम कारक हैं और जीवनशैली में बदलाव से बदले जा सकते हैं।

आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, आधुनिक और उन्नत तकनीक निश्चित रूप से हमारे लिए जीवन आसान कर रही है। इनमें ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन भुगतान, सूचना का उपयोग, ऐसे काम जो सभी हमारे घर से आराम से किए जा सकते हैं। इनका दुष्प्रभाव यह हुआ है कि हमारे स्वास्थ्य की कीमत पर प्रौद्योगिकी ने यह सब क्या किया है। हम अब शारीरिक रूप से कम सक्रिय हैं।

डॉ. अग्रवाल ने कहा, कंप्यूटर पर काम करते हुए लंबे समय तक एक डेस्क पर बैठे रहते हैं, स्मार्टफोन पर सोशल मीडिया का उपयोग कर टीवी देखते हैं। ये सभी गतिविधियां गतिहीन व्यवहार को बढ़ावा देती हैं। खुली जगह की कमी के कारण, सभी आयु समूहों में शारीरिक गतिविधि का स्तर कम हो गया है।

उन्होंने कहा कि एनसीडी को नियंत्रित करने और शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए आईएमए ने ‘मूव मूव मूव’ नामक एक अभियान का प्रस्ताव रखा है। नियमित व्यायाम करने के अतिरिक्त लोगों को दिनभर में अधिक बार घूमना फिरना चाहिए।

एचसीएफआई द्वारा आयोजित किए जाने वाले आगामी परफेक्ट हेल्थ मेला में चर्चा के मुख्य विषयों में यह विषय भी शामिल रहेगा। मेला चार से आठ अक्टूबर तक नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित किया जाएगा।

कुछ उपयोगी टिप्स :

* जितनी बार हो सके सीढ़ियों पर चढ़ें उतरें

* बस स्टॉप से बाहर निकल कर बाकी रास्ते पैदल चलें

* ड्राइविंग के बजाए पास की दुकान तक पैदल जाएं

* फोन पर बात करते समय खड़े होकर घूमें फिरें

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नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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