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लॉजिस्टिक क्षेत्र को बदलकर रख देगी सागर माला परियोजना : मोदी

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रामेश्वरम, 27 जुलाई (आईएएनएस)| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा कि केंद्र की महत्वाकांक्षी सागर माला परियोजना लॉजिस्टिक क्षेत्र को बदलकर रख देगी और देश के 7,500 किलोमीटर के तटीय दायरे में रहने वाले लोगों के जीवन में अहम बदलाव लाएगी। यहां रामनाथपुरम में पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के स्मारक का उद्घाटन तथा कई परियोजनाओं को लॉन्च करने के बाद एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि सरकार परियोजना के माध्यम से आयात, निर्यात तथा व्यापार के लिए लॉजिस्टिक की कीमतों को नीचे लाने के काम में लगी है।

उन्होंने कहा, 7,500 किलोमीटर लंबे तटीय दायरे में निवेश को आकर्षित करने की अपार क्षमता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए लाॉजिस्टिक परिवहन क्षेत्र को फायदा दिलाने को लेकर तटीय इलाके का दोहन करने के उद्देश्य से हम सागर माला परियोजना का कार्यान्वयन कर रहे हैं।

मोदी ने कहा कि सरकार की योजना तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने की है।

मोदी ने रामेश्वरम-अयोध्या श्रद्धा सेतु एक्सप्रेस ट्रेन को भी हरी झंडी दिखाई, जो रामेश्वरम को अयोध्या से जोड़ती है। साथ ही रामेश्वरम से धनुषकोडी के लिए एक सड़क का उद्घाटन किया और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए मछुआरों को ट्रॉलर दिए।

मोदी ने इस दौरान कला प्रदर्शनी बस ‘कलाम संदेश वाहिनी’ को भी हरी झंडी दिखाकर रवाना किया, जो विभिन्न राज्यों की यात्रा कर पूर्व राष्ट्रपति की 86वीं जयंती 15 अक्टूबर को राष्ट्रपति भवन पहुंचेगी।

पेइ करुम्बू में बना यह स्मारक रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा लगभग 16 करोड़ रुपये के खर्च से एक साल में तैयार किया गया है।

मोदी ने फीता काटने और स्मारक में प्रवेश करने से पहले यहां पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया।

मोदी ने इस स्मारक के चारों ओर चक्कर भी लगाया, जिसकी वास्तुकला के लिए कई राष्ट्रीय स्थलों से प्रेरणा ली गई है।

इस स्मारक का प्रवेशद्वार इंडिया गेट के समान दिखता है, जबकि दो गुंबद राष्ट्रपति भवन की तर्ज पर बनाए गए हैं।

इस इमारक का हॉल-1 कलाम के बचपन और शैक्षिक अवधि पर केंद्रित है, हॉल-2 संसद और संयुक्त राष्ट्र के संबोधन सहित उनके राष्ट्रपति रहने के दिनों पर केंद्रित है, हॉल-3 उनके इसरो और डीआरडीओ के दिनों और हॉल-4 कलाम के शिलांग में बिताए गए अंतिम पलों पर केंद्रित है।

कलाम के कुछ सामानों की प्रदर्शनी के लिए एक अलग सेक्शन बनाया गया है, जहां उनकी प्रसिद्ध रुद्र वीणा, जी-सूट जो उन्होंने सू-30 एमकेआई उड़ान के दौरान पहना था और उनके कई पुरस्कार को रखा गया है।

इमारत की बारह दीवारों पर चित्र उकेरे गए हैं।

इमारत में कलाम के शांत और सौहार्दपूर्ण व्यक्तित्व के पहलू को खूबसूरती से प्रतिबिंबित किया गया है।

इस स्मारक की निर्माण सामग्री और अन्य सामान भारत के कई हिस्सों से रामेश्वरम लाए गए थे।

इमारत के प्रवेश पर लगे दरवाजे तंजौर से लाए गए थे।

अपनी इस यात्रा के तहत मोदी पहले मदुरई पहुंचे जहां राज्यपाल सी. विद्यासागर राव, मुख्यमंत्री के.पलनीस्वामी और अन्य स्वागत करने के लिए मौजूद थे। मदुरई से वह रामेश्वरम पहुंचे।

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नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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