आध्यात्म
वैद्यनाथ धाम में मुंडन के बाद ‘बाबा नीर’ से स्नान की अनोखी परंपरा
देवघर, 23 जुलाई (आईएएनएस)| झारखंड में भगवान भोलेनाथ के द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक ज्योतिर्लिग को वैद्यनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। वैद्यनाथ धाम स्थित ज्योतिर्लिग ‘कामना लिंग’ को भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिगों में सर्वाधिक महिमामंडित माना जाता है। वैसे तो अन्य तीर्थस्थलों की तरह यहां मंदिर परिसर में भी ‘मुंडन’ की प्रथा है, परंतु यहां बाल मुंडन के बाद बाबा नीर (भगवान के ज्योतिर्लिग पर जलाभिषेक किए गए जल) से स्नान करने की अनोखी परंपरा है।
मान्यता है कि ऐसा करने से जहां सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, वहीं मुंडन कराने वालों के सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
हजारों श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति के लिए कामना लिंग पर प्रतिदिन जलाभिषेक करने पहुंचते हैं, परंतु भगवान शिव के सबसे प्रिय महीने सावन में यहां उनके भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है।
मान्यता है कि श्रद्धापूर्वक जो भी यहां बाबा के द्वार पहुंचता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कुछ लोग यहां अपनी मनोकामना मांगने आते हैं तो कुछ अपनी मनोकामनापूर्ण होने पर शिव का आभार प्रकट करने आते हैं।
वैद्यनाथ धाम के पुजारी जय कुमार द्वारी आईएएनएस से कहते हैं, यहां मुंडन की पंरपरा काफी पुरानी है। मुंडन संस्कार कराने के लिए यहां लोगों की भारी भीड़ जुटती है। ऐसे में पौराणिक काल से ही यहां मुंडन संस्कार के बाद ‘बाबा नीर’ से स्नान करने की भी प्रथा है। उन्होंने कहा कि बच्चों के अलावा व्यस्क भी मनोकामना पूर्ण होने के बाद मुंडन कराने पहुंचते हैं।
वह कहते हैं, यजुर्वेद के अनुसार मुंडन संस्कार बल, आयु, आरोग्य तथा तेज की वृद्धि के लिए किया जाने वाला अति महत्वपूर्ण संस्कार है। जन्म के बाद पहले वर्ष के अंत या फिर तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष की समाप्ति से पहले शिशु का मुंडन संस्कार करना आमतौर पर प्रचलित है।
उन्होंने बताया कि आमतौर पर मुंडन संस्कार किसी तीर्थस्थल पर इसलिए कराया जाता है, जिससे उस स्थल के दिव्य वातावरण का लाभ शिशु को मिले तथा उसके मन में सुविचारों की उत्पत्ति हो सके। ऐसे में इस बाबा दरबार की प्रसिद्धि काफी है।
जयकुमार कहते हैं कि कई लोग पहले संकल्प ले लेते हैं और जब उनकी मान्यता पूरी हो जाती है तब वे वहां आकर मुंडन करवाते हैं। मुंडन कराकर लोग इसी बाबा नीर से स्नान करते हैं और तब फिर भगवान की पूजा अर्चना करते हैं।
एक अन्य पंडा मौनी द्वारी बताते हैं कि यह प्रथा यहां काफी पुरानी है।
उन्होंने बताया, प्रतिदिन हजारों लोग मंदिर के गर्भगृह में बाबा के ज्योतिर्लिग पर जलाभिषेक करते हैं। इस जलाभिषेक किए गए नीर को बाहर निकासी के लिए मंदिर प्रशासन द्वारा उचित व्यवस्था की गई है। इसी नीर से मुंडन के बाद लोग स्नान करते हैं। कई लोग तो इस बाबा नीर को प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाना नहीं भूलते। मुंडन कराने का भाव समर्पण से माना जाता है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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