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आध्यात्म

गुरु पूर्णिमा पर साधकों ने की श्रीकृपालु जी महाराज की आराधना

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गुरु पूर्णिमा महोत्सव, जगद्गुरु कृपालु परिषत्, गुरु पूर्णिमा स्‍वयं के विकास की समीक्षा का दिन, सुश्री विशाखा त्रिपाठी, भक्तिधाम मनगढ़ में गुरु पूर्णिमा महोत्‍सव   

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जगद्गुरु कृपालु परिषत् के सभी केंद्रों में मनाया गया गुरु पूर्णिमा महोत्सव

गुरुधाम मनगढ़ (कुंडा, प्रतापगढ़-उप्र)। श्री कृपालु जी महाराज की अवतारस्थली भक्तिधाम मनगढ़ में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने गुरु के प्रति आभार व्यक्त करने 15,000 से भी अधिक साधक गुरु-धाम में पधारे।

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इस अवसर पर प्रातःकाल श्रद्धालुओं द्वारा विशेष रूप से गुरु पूजन किया गया। साथ ही भव्य आरती व संकीर्तन हुआ। प्रातः काल संकीर्तन करते हुये भक्ति-धाम की भव्य परिक्रमा हुई, जिसमें श्री महाराज जी को सुसज्जित रथ पर विराजमान किया गया।

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इस अवसर पर जेकेपी की अध्‍यक्षा और श्रीकृपालु जी महाराज की पुत्री सुश्री विशाखा त्रिपाठी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा स्‍वयं के विकास की समीक्षा करने का दिन है। यदि आपको लगता है कि आपने अपने गुरू के बताए मार्ग पर जाकर गत कुछ वर्षो में कोई विकास नही किया है खासतौर पर आध्यात्मिकता के क्षेत्र में, तो समझ लीजिए आपने गुरू द्वारा दिए ज्ञान का प्रयोग नही किया है।

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सुश्री त्रिपाठी ने कहा कि यह वह दिन है जब शिष्‍य अपने गुरू द्वारा दिए गए महान ज्ञान के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता है। हम इसीलिए गुरु पूर्णिमा मनाते हैं।

गुरु पूर्णिमा स्‍वयं के विकास की समीक्षा करने का दिनः सुश्री विशाखा त्रिपाठी

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर सभी साधकों को बधाई देते हुए जेकेपी के सचिव राम पुरी ने कहा कि हमारे समाज में गुरु का महत्व इतना अधिक बताया गया है कि बिना उसका स्मरण किये हमारा कोई कार्य सफल नहीं होता। गुरुपूर्णिमा का पर्व उसी गुरु रूपी तत्‍व को जानने, मानने व उस पर अपनी श्रद्धा और अधिक गहरी जमाते हुए अपना अंतरंग न्यौछावर करने का पर्व है।

गुरु-पूर्णिमा के महापर्व पर गुरूधाम मनगढ़ में गुरु-महिमा व गुरु-शरणागति पर आधारित लीला हुई, जिसे देख साधक-जन भाव-विभोर हो गये।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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