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माल्या को ला पाने की राह नहीं आसां

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विजय माल्या ने शराब कारोबारी से उद्योगपति की बनने की चाह में अपने फरेबी पंखों से यूं उड़ान उड़ी कि चुटकियों में देश को 9 हजार 400 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। शराब कारोबारी को भारत में अच्छी निगाह से नहीं देखा जा रहा था, सो उसने दूसरी ओर रुख किया और देश छोडक़र लंदन में जा बसा।

28 साल की उम्र में पिता की विरासत संभालने वाले विजय ने देश के बेहतर प्रबंधकों को चुना और पहले शराब कारोबार को कॉपोर्रेट का दर्जा दिलाया, फिर उद्योगपति कहलाने, धड़ाधड़ नई कंपनियां खरीदने का शगल पालने की चूक कर बैठा। स्वाभाविक है, घाटा होना था, हुआ। लेकिन खुद को ‘डिफॉल्टर’ कभी नहीं माना और कहता रहा, ‘कोई निजी कर्ज नहीं लिया तो दिवालिया या चूककर्ता कैसा?’ अलबत्ता, कई कानूनों में खामियों-कमियों का उसने भरपूर फायदा उठाया और संभव है कि साजिशन तमाम कंपनियों की बिना पर भारी भरकम कर्ज लेने से गुरेज नहीं की। माल्या को शायद पता था कि कंपनी डूबने पर उसका व्यक्तिगत कुछ बिगडऩे वाला नहीं।

अब भले ही प्रत्यर्तन की प्रक्रिया शुरू होने की खुशफहमी भारत पाल ले, लेकिन बड़ी हकीकत यह है कि राह इतनी आसान भी नहीं। भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रत्यर्पितों की सूची जो 2002 से 7 दिसंबर, 2016 तक यानी 14 वर्षों की है, में दुनियाभर से 61 खूंखार अपराधियों को लाए जाने का ब्यौरा है। विडंबना यह कि ब्रिटेन से 24 वर्षों में केवल एक, गुजरात के समीर भाई वीनू भाई पटेल का ही प्रत्यार्पण हो पाया, वह भी उसके विरोध न किए जाने पर। जबकि भारत के 57 भगोड़े जो आतंकवादी, गबनकर्ता, साजिशकर्ता, धोखाधड़ी के अपराधी और न जाने कितने जुर्मों के दोषी, ब्रिटेन में आलीशान जिंदगी जी रह रहे हैं।

अब 15 भगोड़ों को प्रत्यार्पित करने का भारतीय अनुरोध विचाराधीन है। इनमें विजय माल्या, ललित मोदी, नदीम सैफी, रविशंकरन, टाइगर हनीफ, संजीव चावला व सुधीर चौधरी शामिल हैं, पर कितने और कब तक भारत आ पाएंगे, कोई नहीं जानता। कारण साफ है, प्रक्रिया जटिल है।

अहम यह कि ‘भारत युनाइटेड स्पिरिट्स’ के पूर्व चेयरमैन और किंगफिशर कंपनी के मालिक विजय माल्या 2 मार्च, 2016 को भारत से फुर्र हो गया। इसके बाद उसका पासपोर्ट रद्द किया गया, गैरजमानती वारंट जारी हुआ, ब्रिटेन सरकार से उसके प्रत्यर्पण का आग्रह हुआ। लेकिन ब्रिटेन का जवाब था, वहां रहने के लिए वैध पासपोर्ट जरूरी नहीं। फिर भी चूंकि माल्या पर गंभीर आरोप हैं, इसलिए वहां के गृहमंत्री अम्बेर रेड ने 22 सितंबर, 2016 को प्रत्यर्पण विचार पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसे भारत बड़ी सफलता मान बैठा।

ब्रिटेन की विश्व के 100 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है। सन् 1992 में भारत से ‘बी’ श्रेणी की संधि हुई, यानी प्रत्यर्पण पर निर्णय ब्रिटेन सरकार और अदालत मिलकर करेंगे। भारत को क्राउन ‘प्रॉसिक्यूशन सर्विस’ यानी सीपीएस को आग्रह का शुरुआती मसौदा सौंपने को कहा जाएगा, ताकि बाद में कोई कठिनाई न हो। यह सब ब्रितानी विदेश मंत्री के उस निर्णय के बाद होगा, जिसमें वह प्रत्यर्पण के आदेश देते हैं या नहीं, यानी राजनीतिक दखल यहां भी।

पेंच फिर भी है, यदि प्रत्यर्पित होने वाला व्यक्ति, प्रकरण विदेश मंत्रालय को भेजे जाने के खिलाफ है, तो वह जज के निर्णय के विरुद्ध अपील कर सकता है (शायद इसीलिए माल्या बारबार विरोध कर रहा है)। लेकिन यदि ब्रितानी विदेश मंत्रालय को लगता है, प्रत्यर्पित व्यक्ति को मृत्युदंड होगा तो प्रत्यर्पण से इनकार कर देगा।

एक जटिलता और, विदेश मंत्रालय में प्रकरण जाने के दो महीनों में निर्णय नहीं हुआ तो आरोपी रिहा करने की गुहार लगा सकेगा। हालांकि ब्रितानी विदेश मंत्री अदालत से निर्णय की पेशी बढ़ाने की गुहार कर सकते हैं, लेकिन इस दौरान आरोपी को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अधिकार मिलता है। जाहिर है, माल्या के लौटने की डगर कठिन है।

माल्या ने अपनी भारत में राजनीतिक महत्वकांक्षाएं भी पूरी कीं। आज भले ही सरकार और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि 2002 में राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) ने समर्थन देकर कर्नाटक से पहुंचाया, जबकि दोबारा 2010 में भारतीय जनता पार्टी और जद (एस) के समर्थन से फिर पहुंचा।

अखिल भारतीय जनता दल के एक सदस्य के रूप में विजय माल्या ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और वर्ष 2003 में सुब्रमण्यम स्वामी के नेतृत्व में उनकी जनता पार्टी में शामिल हुआ। रंगीन मिजाजी और विलासितापूर्ण जीवन जीने वाले माल्या ने देशभक्ति दिखाने का भी खूब स्वांग रचा। मार्च 2009 में अमेरिका के जेम्स ओटिस ने बापू के सामानों की नीलामी की तो माल्या ने इसे भारत की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए सभी वस्तुओं को 11 करोड़ में खरीद, खूब सुर्खियां बटोरीं। इसमें गांधीजी का एक चश्मा, जेब घड़ी, एक जोड़ी चमड़े की चप्पलें, एक कटोरी और पीतल की वह थाली, जिसमें महात्मा गांधी ने 1948 में अपनी हत्या से पहले आखिरी बार भोजन किया था। इसी तरह 2004 में लंदन में एक नीलामी में टीपू सुलतान की तलवार की बोली लगाई और पांच लाख से अधिक पाउंड में भारत लाकर देशभक्ति की फिर मिसाल दिखाई।

इसे विडबना नहीं तो और क्या कहें, जिस देश में लाख, पचास हजार के लिए किसान, बेरोजगार आत्महत्याएं कर रहे हैं, छोटे-मोटे कर्ज के लिए दर-दर भटकते हैं, वहीं देश का बड़ा कर्जदार लंदन में मैडम तुसाद म्यूजियम से दो घर छोड़ आलीशान कोठरी में उसी विलासिता से जी रहा है। यह हमारे तंत्र की नाकामी है या तंत्र को नाकाम बना दिया गया है? नहीं पता! अलबत्ता, एक महीने बाद जब ब्रितानी अदालत में प्रक्रिया तेज होगी, तभी कह पाना मुमकिन हो पाएगा कि माल्या कितनी ऊंची उड़ान पर है!

 

नेशनल

लोकसभा चुनाव: पहले चरण में मोदी सरकार के 11 कैबिनेट मंत्रियों की परीक्षा, देखें लिस्ट

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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले चरण की 102 सीटों पर मतदान जारी है। इनमें उत्तर प्रदेश की कुल 8 सीटों पर मतदान हो रहा है जबकि राजस्थान की 12 लोकसभा सीटों के लिए आज वोट डाले जा रहे हैं।उधर मध्य प्रदेश की 6 और बिहार की 4 सीटों के लिए आज वोट डाले जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल की 3, असम और महाराष्ट्र की 5-5 सीटों के लिए भी आज वोट डाले जा रहे हैं. जबकि मणिपुर की 2 और त्रिपुरा, छत्तीसगढ़ और जम्मू कश्मीर की एक-एक सीट के लिए आज मतदान हो रहा है, उधर तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर आज ही मतदान संपन्न हो जाएगा|इसके साथ ही मेघालय की 2, उत्तराखंड 5, अरुणाचल प्रदेश 2, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, मिजोरम, नागालैंड, पुडुचेरी, सिक्किम, और लक्षद्वीप की एक-एक सीट के लिए भी आज मतदान हो रहा है।

इस चरण के मतदान से ही काफी हद तक 2024 की तस्वीर साफ हो जाएगी। पहले फेज में बीजेपी के लिए अपनी सीटें बचाए रखने की चुनौती है तो कांग्रेस को अपनी सीटें बढ़ाने के साथ-साथ सहयोगी दल डीएमके के प्रदर्शन को बरकरार रखना होगा। पहले फेज में ही बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए और कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन की परीक्षा होनी है। पहले फेज में की 40 फीसदी सीटें बीजेपी ने पिछले चुनाव में जीती थी जबकि कांग्रेस महज 15 फीसदी सीटें ही जीत सकी थी। वहीँ पहले चरण में मोदी सरकार के 11 कैबिनेट मंत्रियों की किस्मत दांव पर लगी है।

पहले चरण में चुनाव लड़ रहे हैं ये मंत्री

नितिन गडकरी

केंद्र की मोदी सरकार में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी महाराष्ट्र की नागपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे हुए हैं. इससे पहले भी गडकरी साल 2014 में चुनाव जीते थे. उस चुनाव में गडकरी ने 7 बार के सांसद कांग्रेस नेता विलास मुत्तेमवार को हराया था. साथ ही साल 2019 के चुनाव में गडकरी ने कांग्रेस नेता नाना पटोले को पटकनी दी थी. हालांकि, नागपुर सीट से इस बार कांग्रेस ने विकास ठाकरे को मैदान में उतारा है, जो नागपुर पश्चिम से विधायक हैं.

सर्बानंद सोनेवाल

मोदी सरकार में केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग, आयुष मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे सर्बानंद सोनेवाल असम की डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार हैं. बीजेपी ने इस सीट पर केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री रामेश्वर तेली का टिकट काटकर सोनोवाल को उम्मीदवार बनाया है. फिलहाल, सोनेवाल राज्यसभा सासंद हैं. हालांकि, इससे पहले वो असम के पूर्व सीएम भी रह चुके हैं. इससे पहले सोनेवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में लखीपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे.

किरेन रिजिजू

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री किरेन रिजिजू चुनाव अरुणाचल पश्चिम लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे हुए हैं. वो इस सीट से पहली बार साल 2004 में चुनाव जीते थे. मगर, साल 2009 के चुनाव में वे हार गए थे. इसके बाद साल 2014 में उन्होंने जीत दर्ज की थी. साथ ही साल 2019 में भी वे अरुणाचल पश्चिम सीट से चुनाव जीते. हालांकि, इस चुनाव में उनका सामना अरुणाचल के पूर्व सीएम नबाम तुकी से हैं.

भूपेंद्र यादव

केंद्रीय वन और जलवायु मंत्री भूपेंद्र यादव राजस्थान की अलवर लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार हैं. यहां पर उनका मुकाबला कांग्रेस के ललित यादव से है. जोकि, फिलहाल, अलवर की मुंडावर विधानसभा सीट से विधायक हैं. अलवर से साल 2019 की मोदी लहर में बाबा बालक नाथ ने लोकसभा का चुनाव जीता था. बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में बाबा बालक नाथ विधायक चुने गए. हालांकि, भूपेंद्र यादव का यह पहला लोकसभा चुनाव है. वो 2012 से ही राज्य सभा सांसद हैं.

अर्जुन राम मेघवाल

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. जहां उनका मुकाबला कांग्रेस के पूर्व मंत्री गोविंद राम मेघवाल से है. साथ ही बीएसपी ने खेत राम मेघवाल को मैदान में उतारा है. अर्जुन राम मेघवाल पहली बार इस सीट पर साल 2009 में जीते थे. इसके बाद उन्होंने 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव भी जीता था.

जितेंद्र सिंह

पीएमओ ऑफिस में राज्य मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह जम्मू-कश्मीर की उधमपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट में पांच जिले- कठुआ, किश्तवाड़, रामबन, उधमपुर और डोडा जिले आते हैं. जितेंद्र सिंह इस सीट पर अपने तीसरे टर्म की तैयारी कर रहे हैं. इस बार उनके सामने कांग्रेस के चौधरी लाल सिंह से है. वो 2004 और 2009 में इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं.

संजीव बालियान

मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं. बालियान इस सीट से पहली बार 2014 में चुने गए थे. इसके बाद वो साल 2019 में भी चुनाव जीते थे. जहां पर उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल के चौधरी अजीत सिंह को हराया था. इस बार उनका मुकाबला इंडिया एलायंस की ओर से सपा के उम्मीदवार हरेंद्र मलिक से है.

अजय भट्ट

रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट को बीजेपी ने उत्तराखंड के नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. जबकि, कांग्रेस ने भट्ट के सामने प्रकाश जोशी को चुनावी मैदान में उतारा है. 2019 के लोकसभा चुनावों में अजय भट्ट ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत को पटखनी दी थी.

फग्गन सिंह कुलस्ते

केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए मंडला सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. पार्टी ने कुलस्ते को इसी साल विधानसभा चुनाव में उतारा था लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. हालांकि, कांग्रेस ने ओमकार सिंह मरकाम को टिकट दिया है. इसके अलावा, मायावती की पार्टी बसपा ने इंदर सिंह उइके को चुनावी मैदान में उतारा है.

निशिथ प्रमाणिक

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निशिथ प्रमाणिक पश्चिम बंगाल के कूचबिहार लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. वे 2019 के लोकसभा चुनावों में वो पहली बार सांसद बने. इस बार टीएमसी ने विधायक जगदीश बर्मा बसुनिया को मैदान में उतारा है.

एल मुरुगन

मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री एल मुरुगन को बीजेपी ने तमिलनाडु के नीलगिरी लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. उनके सामने डीएमके ने पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा को उतारा है. मुरुगन पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.

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