मुख्य समाचार
18 अक्टूबर 2015 का राशिफल
मेष- आपके कार्यक्षेत्र से संबंधित कोई महत्वपूर्ण सूचना की प्राप्ति होगी। गलतफहमियों के चलते विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आपकी कार्यकुशलता के कारण लक्ष्य प्राप्ति में सहायता प्राप्त होगी।
वृष- मन मे सकारात्मक विचार रहेंगे। कार्यों में दिनभर व्यस्तता रहेगी। मित्र आपके पास सहायता हेतु आ सकते हैं। स्वयं पर विश्वास बनाए रखें आपकी योग्यता की उचित परख होगी।
मिथुन- आप काफी शांत व ऊर्जावान रहेंगे। किसी भी विवाद को सुलझाने का यह सही समय है। स्वयं के विश्राम का उचित ध्यान अवश्य रखें। आर्थिक रूप से समय अच्छा है।
कर्क- जल्दबाजी में कोई भी निर्णय न लें। स्वयं के व्यवहार में आप कुछ आवश्यक बदलाव कर सकते हैं। प्रेम संबंध होंगे। कार्यक्षेत्र की व्यवस्था पर ध्यान दें अथवा हानि हो सकती है।
सिंह- भाग्य पूर्णतः आपके साथ है। लक्ष्य की प्राप्ति होगी। स्वयं को भली प्रकार व्यक्त करें। स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट रहेगी। विवादों को सरलतापूर्वक सुलझा सकेंगे। आर्थिक रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है।
कन्या– अपनी बात बड़ी सहजता से दूसरों को समझा सकेंगे। ऐसी बात बोलने से बचें जिससे सामने वाले को कष्ट पहुंच सकता है। उच्च रक्तचाप के रोगी अपना विशेष रूप से ध्यान रखें। कुछ कार्यों में विलम्ब हो सकता है परन्तु अंततः यह अच्छाई के लिए ही होगी।
तुला- आप सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहेंगे। लापरवाही के कारण हानि हो सकती है। जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें। वार्तालाप के जरिए कार्यक्षेत्र में नवीन अवसरों की प्राप्ति होगी। आर्थिक रूप से दिन अच्छा रहेगा।
वृश्चिक- आज हर एक के साथ सामंजस्य बिठाना कुछ कठिन होगा। यदि आप प्रसन्नता चाहते हैं तो स्वयं के हित में कुछ निर्णय अवश्य लें। विरोधियों का सामना करना पड़ेगा। अंततः सभी विवादों को आप दूर कर सकेंगे।
धनु- आपको महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है। आप सही दिशा में कार्य कर सकेंगे। प्रेम संबंधों में कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं। सूचना व खोज के क्षेत्र के लिए दिन अच्छा है।
मकर- सही निर्णय लेने के लिए अपने मन की बात अवश्य सुनें। कार्यों से अलग हटकर स्वयं के लिए कुछ समय निकालें। किसी मनोरंजक स्थल की यात्रा पर जा सकते हैं।
कुभ- आप स्वतंत्रतापूर्वक जीवन यापन करना चाहते हैं। आप भली प्रकार यह जानते हैं कि जीवन में आपकी क्या आवश्यकताएं हैं। जीवनसाथी के साथ संबंध प्रेमपूर्ण रहेंगे। आर्थिक रूप से दिन काफी अच्छा रहेगा।
मीन- आपके सामने कोई महत्वपूर्ण लक्ष्य आ सकता है। विजय प्राप्त करने हेतु आपको धैर्य रखने की आवश्यकता है। लोग आपकी दूरदर्शिता की सराहना करेंगे। आर्थिक रूप से अच्छा दिन रहेगा।
नेशनल
पहले फेज के वोटर के बिगाड़ा मोदी का मूड
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पारटीस के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।
जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18 वें लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।
शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकार टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।
फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्यूंकी evm खुलने के पहले कोई नहीं जनता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।
दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-
2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा जोश…
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