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सपा के चुनाव चिन्ह साइकिल पर चुनाव आयोग का फैसला सुरक्षित, घोषणा सोमवार को
नई दिल्ली। निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ को आवंटित करने पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। उम्मीद है कि वह अपना निर्णय सोमवार को सुनाएगा। समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव की वकील गौरी नौलांकर ने आयोग में सुनवाई के बाद कहा, “आयोग ने अपना फैसला आज (शुक्रवार को) सुरक्षित रख लिया। वह पार्टी के चुनाव चिन्ह के बारे में सोमवार को निर्णय सुनाएगा।”
उन्होंने कहा, “आयोग ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।” शुक्रवार को हुई सुनवाई की संक्षिप्त जानकारी देते हुए अधिवक्ता गौरी ने कहा, “मुलायम जी ने कहा कि शुरुआत से ही वह पार्टी के वैधानिक अध्यक्ष हैं, इसलिए कोई भी व्यक्ति अवैधानिक रूप से सम्मेलन बुलाकर उन्हें उनके पद से नहीं हटा सकता है।” गौरी के अनुसार, मुलायम ने आयोग से कहा कि पार्टी के संविधान के मुताबिक वह उसके पदस्थ अध्यक्ष हैं।
अधिवक्ता ने कहा कि मुलायम के पुत्र और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी से कहा कि यह अखिलेश की पार्टी की है। आयोग में सुनवाई के बाद सिब्बल ने भी संवाददाताओं से कहा कि आयोग ने दोनों गुटों की बातें सुनीं और किसी एक पक्ष को चुनाव चिन्ह देने को लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया।
उधर, मुख्यमंत्री के वकील सुमन राघव ने कहा, “मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी के समक्ष हमारे अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हमारा पक्ष प्रस्तुत किया है। उन्होंने आयोग को सूचित किया कि पार्टी के अधिकांश सांसद और विधायक अखिलेश के साथ हैं, इसलिए साइकिल चुनाव चिन्ह हमलोगों को मिलना चाहिए।” राघव ने कहा, “हम आश्वस्त हैं कि निर्णय हमारे पक्ष में होगा।”
सुनवाई के लिए हालांकि मुख्यमंत्री यहां नहीं आए थे, लेकिन उनके सिपहसलार रामगोपाल यादव, नरेश अग्रवाल, किरणमय नंदा और नीरज शेखर उपस्थित थे। मुलायम के साथ उनके भाई शिवपाल यादव, आशु मलिक और संजय सेठ थे। निर्वाचन आयोग में शुक्रवार को सुनवाई करीब चार घंटे तक चली।
नेशनल
दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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