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मुख्य समाचार

सपा में कलह बढ़ी, शिवपाल ने सरकारी आवास खाली किया

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shivpal-yadavलखनऊ, राज्य मंत्रिमंडल से दूसरी बार बर्खास्त किए जाने के तीन दिन बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने बुधवार को यहां अपना सरकारी आवास खाली करना शुरू कर दिया। यह इस बात का संकेत है कि सपा के संघर्षरत गुटों में सुलह की कोई गुंजाइश नहीं है।

शिवपाल के घर सामान ले जाने के लिए उनके सरकारी निवास, 7 कालीदास मार्ग के सामने मिनी ट्रक खड़े थे। शिवपाल का सरकारी निवास उनके भतीजे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निवास के ठीक बगल में है।

पहले सुबह में शिवपाल के स्टाफ ने उनके सरकारी निवास से मंत्री के रूप में उनकी नाम पट्टिका हटा कर संकेत दिया था कि वह राज्य सरकार में वापसी नहीं चाहते हैं।

पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह ने अपने भाई शिवपाल यादव को मिलने के लिए बुलाया है।

एक अन्य घटनाक्रम में, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्यपाल राम नाईक से मुलाकात की, जिसे बाद में शिष्टाचार भेंट के रूप में उल्लेख किया गया।

साढ़े चार साल पुरानी उत्तर प्रदेश की सपा सरकार में दूसरे नम्बर के कद्दावर मंत्री शिवपाल यादव को पिछले एक महीने में दूसरी बार हटाया गया। उनके एक सहायक ने आईएएनएस को बताया कि उनकी गाड़ी से लालबत्ती हटा दी गई है और उन्होंने अपना आधिकारिक वाहन राज्य संपत्ति विभाग को सौंप दिया।

राजनीतिक गलियारों में इस कदम को अखिलेश को शिवपाल की झिड़की के रूप में देखा जा रहा है। बताया जाता है कि मुलायम के साथ सुलह के प्रयास के दौरान शिवपाल और तीन अन्य मंत्रियों-ओमप्रकाश सिंह, नारद राय और शादाब फातिमा को पुन: मंत्रिमंडल में वापस लेने के बदले अखिलेश ने पार्टी से रामगोपाल यादव का निष्कासन निरस्त कराने की कोशिश की।

मुलायम ने शुरुआत में अखिलेश से बर्खास्त मंत्रियों को फिर बहाल करने को कहा था, लेकिन मुख्यमंत्री ने उनकी बात नहीं मानी। मजबूरन सपा प्रमुख ने संवाददाताओं से कहा कि यह मुद्दा उन्होंने अखिलेश पर छोड़ दिया है।

मंत्रिमंडल से बर्खास्त पूर्व पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह मंगलवार को संवाददाता सम्मेलन के दौरान मुलायम सिंह के बगल में बैठे थे। जब सपा प्रमुख ने यह बयान दिया तो वह नाराज लग रहे थे।

समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है, जिसकी पुष्टि एक और घटनाक्रम में हुई। सपा ने बुधवार को पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के एक निकट सहयोगी को थप्पड़ मारने के आरोपी वन राज्य मंत्री पवन पांडे को पार्टी से निष्कासित कर दिया।

अनुशासनात्मक कार्रवाई की घोषणा सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने की।

पांडे अखिलेश यादव के करीबी माने जाते हैं।

विधान परिषद सदस्य आशु मलिक ने सोमवार को आरोप लगाया था कि पांडे ने उन्हें मुख्यमंत्री निवास पर थप्पड़ मारा था।

शिवपाल ने बुधवार को कहा कि पार्टी अनुशासनहीनता के किसी भी रूप को बर्दाश्त नहीं करेगी।

हालांकि शिवपाल इस बात पर कायम थे कि पार्टी या यादव परिवार में कोई मतभेद नहीं है।

उन्होंने आगे कहा, “हम एकजुट हैं और अब अगाामी पांच नवम्बर को होने वाले पार्टी की रजत जयंती समारोह और उसके बाद राज्य विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी कर रहे हैं।”

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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