Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

मुख्य समाचार

मुलायम के तेवर सख्त, महाबैठक में आज ले सकते हैं कड़ा फैसला

Published

on

Loading

mulayam singhलखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने सोमवार को पार्टी कार्यालय पर एक महाबैठक बुलाई है। वह 40 वर्ष से ज्यादा लंबे सियासी सफर की अब तक की सबसे बड़ी चुनौती से जूझ रहे हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को अपनी ताकत दिखा दी लेकिन अब मुलायम आज अपने विधायकों के साथ बैठक कर बड़े सियासी फैसले का ऐलान कर सकते हैं।

सूत्रों के मुताबिक, ऐसी संभावना है कि मुलायम को सपा विधानमंडल दल का नेता चुने जाने की पहल भी हो सकती है। सूत्रों ने बताया कि शिवपाल, अमर सिंह के अलावा कई ताकतवर पुराने समाजवादी चाहते हैं कि मुलायम अखिलेश की जगह लें। उनका आरोप है कि अखिलेश ने चुनावों में अकेले जाने का मन बनाया है और एक पंचलाइन भी तैयार कर ली है, ‘मेरा परिवार उत्तर प्रदेश है।’

मुलायम के समर्थकों का दावा है कि अखिलेश गुट ने मुलायम व शिवपाल की तस्वीरों के बिना पोस्टर्स और होर्डिंग्स भी बनवा लिए हैं। इससे पूर्व अखिलेश द्वारा चार मंत्रियों को बर्खास्त करने, अमर सिंह व गायत्री को निशाने पर लेने के बाद रविवार को जब हालात बेकाबू हो गए तो मुलायम को अपने चचेरे भाई रामगोपाल यादव को ही पार्टी से निकालने का फैसला लेना पड़ा।

रविवार देर शाम मुलायम सिंह ने मंत्री पद गवाने वाले व अपने छोटे भाई शिवपाल यादव को अपने आवास पर बुलाया और उनसे अखिलेश की बैठक में आने वाले विधायकों पर चर्चा की और भरोसा दिलाया कि सभी विधायक सोमवार को पार्टी दफ्तर में रहेंगे। उन्होने दिनभर चले घटनाक्रम व अखिलेश यादव के फैसलों से उपजे हालात पर चर्चा की।

इसके बाद मुलायम ने शिवपाल, नारद राय, ओम प्रकाश सिंह, शादाब फातिमा, अंबिका चौधरी व आशुमलिक मौजूद थे। इसके बाद उन्होंने रजत जयंती समारोह की तैयारियों के सिलसिले में गायत्री से लंबी चर्चा की।

इससे पहले सुबह मुलायम सिंह यादव ने बेनी प्रसाद वर्मा, किरनमय नंदा, रेवती रमण सिंह व नरेश अग्रवाल के साथ चर्चा की। मुलायम के हवाले से सूत्रों ने बताया, डेढ़ साल हो गया लेकिन इस बीच अखिलेश ने कभी उनसे गंभीर विषयों पर चर्चा नहीं की। उन्होंने खून-पसीने से इस पार्टी को सींचा है।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

Published

on

Loading

सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

Continue Reading

Trending