Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

आध्यात्म

राधा जी को श्रीकृष्ण माधुर्य रस के पान का सौभाग्य प्राप्त था

Published

on

यह सब अलौकिक बुद्धि से ही समझा जा सकता है

Loading

राधा जी, श्रीकृष्ण , नयनाभिराम भगवान् राम, कृष्णा वतार

kripalu ji maharaj

एक बार पुनः खेलते हुये नन्‍दललन को अपना प्रतिबिंब दिखाई पड़ा। बस फिर क्‍या था- उसे चिपटाने के लिए बार-बार विशाल बाहों को फैलाने। लगे श्री राधा जी छुपकर यह दृश्‍य देख रहीं थी। और हँस रहीं थी कि अरे बुद्धू! तेरे भग्‍य में यह रूपमाधुरी नहीं है यथा-

स्‍वच्‍छायामभिवीक्ष्‍य मुह्यति हरौ राधास्मितं पातु नः।

(गर्गसंहिता)

महाप्रभु गौरांग ने कहा-

रूप देखि आपनार कृष्‍णेर हय चमत्‍कार

आस्‍वादिते मने उठे काम

अर्थात् श्रीकृष्‍ण को अपने ही रूप माधुर्य को देख कर परमाश्चर्य हुआ एवं गोपी बन कर आस्‍वादन करने की कामना जाग्रत हो गई। किंतु यह कैसे संभव है।

श्री नयनाभिराम भगवान् राम का भी यही हाल है। यथा-

रूप राशि छवि अमित बिहारी, नाचहिँ निज प्रतिबिंब निहारी।

सारांश यह कि यह तो सर्वविदित है कि श्रीकृष्‍ण का रूप माधुर्य ब्रह्मा शंकरादिकों को भी मोहित कर लेता है । स्‍वयं भगवान् शंकर ने गोपी बन कर उस रस का पान किया किंतु यह नई बात है कि वे सर्वविमोहन स्‍वयं भी अपने सौंदर्य माधुर्य में विभोर हो जाते हैं। इसी लक्ष्‍य से ही कृष्‍णावतार में 2 रूप धारण करके आये थे। राधा कृष्‍ण। एक रूप में आस्‍वाद्य एवं एक रूप में आस्‍वादक भी थे।

कुछ भी हो किंतु राधा जी को श्रीकृष्‍ण माधुर्य रस के पान का सौभाग्‍य प्राप्‍त था। एवं श्रीकृष्‍ण को राधा रूप माधुर्य के रस के पान करने का सौभाग्‍य था। जबकि ब्रजांगनाओं  को राधा कृष्‍ण दोनों के माधुर्य रस पान करने का अद्वितीय सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ था। इसी प्रकार सभी जीवों को प्राप्‍त हो सकता है।

राधे राधे राधे राधे राधे राधे

एक बार बड़े हो जाने पर द्वारिका में भी ऐसा ही हुआ। मणिओं की दीवार पर द्वारिकाधीश ने अपनी परछाईं देखी बस-मुग्‍ध हो गये। और मन ही मन श्रीकृष्‍ण, श्री राधा बनने की कामना करने लगे। क्‍योंकि श्रीकृष्‍ण के रूप माधुर्य का सम्‍यक् आस्‍वादन वृषभानुदिनी राधिका ही करती हैं।

एक बार पुनः खेलते हुये नन्‍दललन को अपना प्रतिबिंब दिखाई पड़ा। बस फिर क्‍या था- उसे चिपटाने के लिए बार-बार विशाल बाहों को फैलाने। लगे श्री राधा जी छुपकर यह दृश्‍य देख रहीं थी। और हँस रहीं थी कि अरे बुद्धू! तेरे भाग्‍य में यह रूपमाधुरी नहीं है यथा-

स्‍वच्‍छायामभिवीक्ष्‍य मुह्यति हरौ राधास्मितं पातु नः ।

महाप्रभु गौरांग ने कहा-

रूप देखि आपनार कृष्‍णेर हय चमत्‍कार

आस्‍वादिते मने उठे काम

राधे राधे राधे राधे राधे राधे  

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

Published

on

Loading

नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

Continue Reading

Trending