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यूपी चुनाव में अब ‘कसाब’ ने किया ब्लास्ट, शाह ने निपटने का दिलाया भरोसा

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गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के चुनावी महाभारत में स्कैम, कब्रिस्तान-श्मशान और गुजरात के गधे के बाद अब ‘कसाब’ ने भी धमाका कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चौरी-चौरा की चुनावी रैली में कहा कि उप्र को कसाब से मुक्ति चाहिए। शाह ने इसका अर्थ भी बताया और कहा कि ‘क’ से कांग्रेस, ‘स’ से सपा और ‘ब’ से बसपा है।

गौरतलब है कि कसाब मुंबई हमले में शामिल एकमात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकी था, जिसे 2014 में फांसी दे दी गई थी। शाह ने कहा, “सपा और बसपा में दोनों ओर खाई है, इसलिए लोगों के लिए सिर्फ भाजपा का रास्ता खुला है। उत्तर प्रदेश में अध्यादेश लाकर सारे बूचडख़ाने बंद करवा देंगे। हम पूरे राज्य में दूध-पानी की नदियां बहाएंगे।”

उन्होंने कहा कि उप्र को कसाब से मुक्ति चाहिए। शाह ने रैली में जमा भीड़ से पूछा – बताऊं ये कसाब कौन है? उनके इस सवाल पर जनता ने पूरे जोश के साथ हां में जवाब दिया। उसके बाद उन्होंने कसाब का परिचय दिया, “ये कसाब कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी है। यानी ‘क’ मतलब कांग्रेस, ‘स’ मतलब सपा और ‘ब’ मतलब बसपा।”

इसके साथ ही शाह ने अखिलेश के ‘काम बोलता है’ कि नारे पर भी तीखा हमला किया। उन्होंने कहा, “अखिलेश ने काम किया है। उन्होंने हत्या के मामले में उप्र को नंबर वन बना दिया।”

दुष्कर्म के मामले में नंबर वन बना दिया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में शहजादे शब्द का खूब इस्तेमाल हुआ था। अब उप्र चुनाव में भी ये शब्द लौटकर आ गया है। शाह ने राहुल गांधी और अखिलेश यादव के गठबंधन पर तीखा हमला करते हुए कहा, “शहजादे रोज नए कपड़े पहनकर आ जाते हैं। एक से उसकी मां परेशान है तो दूसरे से उसके पिता। इन दोनों से उप्र परेशान है।”

भाजपा की जीत और अच्छे दिन आएंगे का भरोसा दिलाते हुए उन्होंने कहा, “11 मार्च को उप्र के अच्छे दिन आएंगे। उस दिन दोपहर एक बजे अखिलेश सरकार समाप्त हो जाएगी। भाजपा की सरकार बन जाएगी। तब अच्छे दिन आएंगे।”

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फतेहपुर की रैली में अखिलेश सरकार पर धार्मिक आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए कब्रिस्तान, श्मशान, रमजान, होली और दिवाली जिक्र किया था, जिसके जवाब में अखिलेश ने गुजरात के गधों का प्रसंग जोड़ दिया था। उप्र में तीन चरण के मतदान पूरे हो गए हैं और गुरुवार को चौथे चरण के मतदान होने हैं। आठ मार्च को आखिरी चरण का मतदान होगा है और 11 मार्च को परिणाम आएंगे।

नेशनल

पहले फेज के वोटर ने बिगाड़ा मोदी का मूड

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पार्टीज के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।

जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18वीं लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।

शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकर टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।

फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्योंकि evm खुलने के पहले कोई नहीं जानता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।

दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-

2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा

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