आध्यात्म
यह सब अलौकिक बुद्धि से ही समझा जा सकता है
अर्थात् हे पथिकों ! इस मार्ग से कोई न जना क्योंकि मार्ग मं एक नंगाशिशु जो तमाल वर्ण का है। कमर पर हाथ रखकर खड़ा है। उसकी एक चितवनि ने मुझ परमहंस (ब्रह्मानन्दी) को बरबस दास बना लिया। जब मुझ ब्रह्मानन्दी की यह दुर्दशा हो गई तो तुम लोगों का क्या होगा। उससे दूर ही रहो।
उनकी चितवनि की विलक्षणता का निरूपण कौन करे। उनके दर्शन के बिना ही केवल उनके गुणों में ऐसा कमाल है कि जन्मजात परमहंस शुकदेव एक श्लोक द्वारा गुणगान सुनकर ब्रह्मानन्द खो बैठे! एवं श्रवण, मनन, निदिध्यासनादि से परे होकर भी पुनः गुणगान सुनने अपने पिता वेदव्यास के पास आये। भागवत सुना फिर उस भागवत को परीक्षित को सुनाया। और कहा। यथा –
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क् व चित्।।
(भाग. 12-13-15)
अर्थात् अद्वैतादि समस्त वेदान्त सिद्धान्तों का सार यही है कि भागवत का रस पान किया जाय।
महारास में भगवान् शंकर केवल मुरली ध्वनि से समाधि भुलाकर भागे चले आये। जब गोपी ने रोक दिया तो श्री किशोरी जी की आज्ञा से गोपी बन कर ही आ सके। यह आश्चर्य नहीं है। क्योंकि परमहंस जिस समाधि में लीन होकर ब्रह्मानन्द का आस्वादन करता है। वह श्रीकृष्ण के ही शरीर का चिन्मय प्रकाश है। जब प्रकाश वाला मिल गया तो प्रकाश वाले के आगे प्रकाश का मूल्य स्वयं समाप्त हो जाता है। यह सब अलौकिक बुद्धि से ही समझा जा सकता है।
राधे राधे राधे राधे राधे राधे
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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