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बॉक्सऑफिस पर आज ‘डियर जिंदगी’ रिलीज हो चुकी है देखने से पहले जाने रिव्यू

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बॉक्सऑफिस पर आज ‘डियर जिंदगी’ रिलीज हो चुकी है देखने से पहले जाने रिव्यू

इंग्लिश विंग्लिश की सफलता के बाद गौरी शिन्दे ‘डियर जिदंगी’ लेकर आयी है जिसमें पैरेटिंग के मुद्दे को उठाया गया है। मां-बाप अपने बच्चे  को करियर और कामयाबी के दबाव में ज्यादती करते रहते है उन्हें पता ही नहीं चलता कि उनके बच्चे इस दबाव में किस दिशा में मुड़ जाते है। ऐसी ही कहानी डियर जिंदगी की है जिसमें एक ऐसी लडक़ी को दिखाया गया है जिसकी जिंदगी कहने को तो बड़ी फास्ट है लेकिन उसके रिश्तों के कोने खाली हैं। उलझनो से भरी कायरा (आलिया भट्ट) की जिंदगी का एक ही मकसद है अपनी खुद की फ्लेज फिल्म शूट करना।

कायरा एक कैमरा वुमन है, एड फिल्म शूट करती है लेकिन अब वो एक सिनेमेटोग्राफर बनना चाहती है। उसको मौका देता है एक प्रोड्यूसर रघुवेंद्र (कुनाल कपूर) जिसके साथ वो एक फिल्म के लिए अमेरिका जाने वाली है। लेकिन अमेरिका जाने से एक दिन पहले उसको रघुवेंद्र के एक्स लवर के बारे में पता चलता है। रघुवेंद्र के चक्कर में कायरा, सिड (अंगद बेदी) के लव प्रपोजल को पहले से ठुकरा चुकी है।

मुंबई में रहने वाली कायरा की अपने पेरेंट्स से भी नहीं बनती, जो गोवा में रहते हैं। एक दिन कायरा को इमरजेंसी में अपना घर छोड़कर गोवा में अपने पेरेंट्स के पास जाना पड़ता है। यहां उसकी जिंदगी में एंट्री होती है डॉ. जहांगीर खान की जो कि एक साइकेट्रिस्ट है। जहांगीर उसको समझाता है कि उसे अपनी जिंदगी को समझना होगा, अपने रिश्तो को अपनाना होगा। धीरे-धीरे कायरा को ये बातें समझ आने लगती हैं और उसके रिश्ते भी सामान्य होने लगते हैं। तभी कायरा की जिंदगी में एक सिंगर रूमी (अली जफर) की एंट्री होती है, जिसे वो पसंद करती है लेकिन कन्फयूज है। तब कायरा से बात करके जहांगीर को उसके अतीत के बारे में पता चलता है, जिसपर उसके बचपन की कुछ बातों का गहरा असर पड़ता है।

फिल्म में आलिया की एक्टिंग जबरदस्त है और शाहरुख के साथ उनकी केमिस्ट्री भी अच्छी रही है। ये फिल्म एक उतसुक्ता के साथ शुरू होती है। कायरा की काफी सारी बातों और उलझनो से शायद आप रिलेट भी करेंगे लेकिन गौरी शिंदे की लास्ट फिल्म की तरह ये फिल्म बहुत सारी उम्मीद और आशाएं देकर नहीं जाती। फिल्म काफी लंबी है और कई बार ये लगता है कि लेक्चर बंद करो और फिल्म को भी।

फिल्म में एंटरटेनमेंट की बहुत कमी है। उम्मीद थी कि आलिया और किंग खान की जोड़ी कुछ अलग किस्म के रंग भरेगी लेकिन फिल्म ने इस प्वॉइंट पर निराश किया है।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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