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बैंकों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल आज, करोड़ों का लेन-देन होगा प्रभावित
चेन्नई| नौ बैंकों के कर्मचारी संगठनों ने सरकार के बैंकिंग प्रणाली में सुधार के कदम को जनविरोधी करार देते हुए विरोध में मंगलवार को हड़ताल का आह्वान किया है। बैंककर्मियों की मांग है कि नोटबंदी के कारण कराए गए अतिरिक्त काम का मुआवजा दिया जाए और कर्ज नहीं चुकानेवाले बड़े कर्जदारों पर कार्रवाई की जाए।
युनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) के बैनर तले जो नौ यूनियन एकजुट हैं, उनके नाम हैं- एआईबीईए, एआईबीओसी, एनसीबीई, एआईबीओए, बीईएफआई, आईएनबीएफएफ, आईएनबीओसी, एनओबीडब्लयू और एनओबीओ। ऑल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन (एआईबीईए) के महासचिव सी. एच. वेंकटचलम ने आईएएनएस को बताया, “भारतीय बैंकिंग उद्योग को असली खतरा डूबे हुए बड़े कर्ज और जानबूझकर कर्ज नहीं चुकानेवालों से है। बुरे कर्जो के लिए जबावदेही तय करना तथा जानबूझकर कर्ज नहीं चुकानेवाले कर्जदारों तथा उन्हें कर्ज मुहैया करानेवाले बैंक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करना समय की जरूरत है, ना कि बैड बैंक का गठन करना।”
आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में ‘बैड बैंक’ की स्थापना का सुझाव दिया गया था, ताकि बैंकों के फंसे हुए कर्जो (जिसे गैर निष्पादित परिसंपत्तियां कहा जाता है) से निपटा जा सके। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार एक संपत्ति पुर्नवास एजेंसी का गठन करें, जो फंसे हुए कर्जो को बैंकों से खरीद कर उसका बोझ उठाए, ताकि बैंकों के कर्ज का बोझ कम करने का कठिन राजनीतिक फैसला लिया जा सके।
वेंकटचलम के अनुसार यह एक सरकारी संस्था के फंसे हुए कर्जो को दूसरी सरकारी संस्था का गठन कर उसके सिर मढ़ने के अलावा कुछ नहीं है। एआईबीईए ने कहा, “यूनियन दो दशकों से भी लंबे समय से सरकार के जनविरोधी और श्रम शक्ति विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ रही है।” इसमें कहा गया, “इसके अलावा बैंकिंग उद्योग की स्थायी नौकरियों को आउटसोर्स करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं, जो जोखिम से भरा है।” उन्होंने कहा कि हड़ताल में 10 लाख से ज्यादा बैंककर्मी जिसमें अधिकारी से लेकर क्लर्क तक हैं, शामिल होंगे।
वेंकटचलम ने कहा कि हड़ताल का आह्वान यूनियनों द्वारा उठाए गए मांगों के समाधान खोजने के किए गए सारे प्रयासों के विफल हो जाने के बाद किया गया है। मुख्य श्रम आयुक्त के समक्ष 21 फरवरी को बैंक प्रबंधन निकाय – इंडियन बैंक एसोसिएशन (आईबीए) के साथ सुलह बैठक में यूनियन की मांग पर कोई फैसला नहीं हो पाया था।
अधिकांश सरकारी बैंकों ने ग्राहकों को सूचित किया है कि हड़ताल के कारण उनकी शाखाओं और कार्यालयों में सेवाएं बाधित रहेंगी। वहीं, शीर्ष निजी बैंक- आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और एक्सिस बैंक – यूनियन में शामिल नहीं है। इसलिए इन बैंकों की शाखाओं/कार्यालयों पर कामकाज सामान्य रूप से जारी रहेगा, हालांकि चेक के क्लियरेंस में रुकावट आ सकती है। इसके अलावा, नकद लेनदेन भी बाधित रहेगा और संभावना है कि एटीएम सुबह जल्दी ही खाली हो जाएंगे।
नेशनल
पहले फेज के वोटर ने बिगाड़ा मोदी का मूड
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पार्टीज के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।
जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18वीं लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।
शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकर टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।
फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्योंकि evm खुलने के पहले कोई नहीं जानता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।
दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-
2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा
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