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बीसीसीआई पर चलेगा राय का ‘राज’, चार सदस्यीय कमेटी करेगी सभी फैसले

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vinod-raiनई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का कामकाज देखने के लिए चार सदस्यीय प्रशासक समिति का गठन किया है। अदालत ने इस समिति का मुखिया पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) विनोद राय को बनाया है।

न्यायामूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायामूर्ति ए.एम. खानविल्कर और न्यायामूर्ति डी.डब्ल्यू चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि इस समिति के अन्य सदस्य इतिहासकार रामचंद्र गुहा, आईडीएफसी के प्रबंधकीय निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) विक्रम लिमाये और भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान डयना इदुल्जी हैं।

अदालत ने दो फरवरी को होने वाली अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की तीन दिवसीय बैठक के लिए भी तीन सदस्यीय समिति का गठन भी किया है, जिसमें बीसीसीआई के संयुक्त सचिव अमिताभ चौधरी, कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी और लिमाये शामिल हैं।

प्रशासकों को नियुक्त करते समय अदालत ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के खेल मंत्रालय के सचिव को प्रशासन समिति में शामिल करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। अदालत ने इसके लिए अपने 18 जुलाई 2016 के आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि कोई भी सरकारी अधिकारी और मंत्री बीसीसीआई में पद नहीं संभाल सकता।

अटॉर्नी जनरल अदालत में रेलवे, सर्विसेज और विश्वविद्यालय खेल संघ की ओर से दलील दे रहे थे। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने राय की नियुक्ति का यह कहते हुए विरोध किया था कि वह बैंक बोर्ड ब्यूरो के चेयरमैन हैं इसलिए वह इस समिति में शामिल नहीं हो सकते, लेकिन अदालत ने उनकी इस दलील को भी नकार दिया।

अदालत ने कहा कि बीसीसीआई के सीईओ राहुल जौहरी, विनोद राय की अध्यक्षता वाली समिति को बोर्ड में लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने करने वाली रिपोर्ट सौंपेंगे। इस मामले की अगली सुनवाई 27 मार्च को होगी। अदालत ने कहा है कि प्रशासक समिति लोढ़ा समिति की सिफारिशों के क्रियान्वान पर अपनी रिपोर्ट चार सप्ताह में अदालत में पेश करेगी।

अदालत ने वरिष्ठ वकील अरविंद दातर की उस सलाह को भी नकार दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रशासक समिति को बिना किसी वेतन के काम करना चाहिए जिस तरह बीसीसीआई अधिकारी करते आ रहे थे।

दातर की इस सिफारिश को खारिज करते हुए अदालत ने उन्हें प्रशासकों के लिए सम्मानजनक वेतन का प्रस्ताव पेश करने का आदेश दिया है। दातर ने अदालत से कहा, “जब मैंने बीसीसीआई के अधिकारी के तौर पर नि:स्वार्थ काम किया तो प्रशासक समिति ऐसा क्यों नहीं कर सकती।”

अदालत ने राज्य संघों को लोढ़ा समिति से अलग रखने की याचिका पर आदेश देने पर यह कहते हुए मना कर दिया कि उसका ध्यान इस समय सिर्फ लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने पर है।

राज्य संघों ने अदालत में कहा है कि उन्हें लोढ़ा समिति का हिस्सा न बनाया जाए क्योंकि उनके मामले की सुनवाई नहीं हुई है। उन्होंने इसके लिए अदालत के पूर्व आदेश का हवाला दिया है जिसमें कहा गया था कि बदलाव सिर्फ बीसीसीआई तक की सीमित हैं सहयोगी राज्यों पर यह लागू नहीं हैं।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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