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टोक्यो में मिलने के वादे के साथ रियो ओलम्पिक का समापन

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टोक्यो

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टोक्योरियो डी जनेरियो| ब्राजील के सबसे बड़े महानगर रियो डी जनेरियो में 5 अगस्त को शुरू हुए 31वें ओलम्पिक खेलों का समापन हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) के अध्यक्ष थामस बाक ने स्थानीय समयानुसार रविवार रात 10.30 बजे (भारतीय समयानुसार सोमवार सुबह 7 बजे) माराकाना स्टेडियम में टोक्यो में 2020 में मिलने के वादे के साथ इन खेलों का समापन किया। टोक्यो को 2020 ओलम्पिक की मेजबानी दी गई है और उसने अपने प्रधानमंत्री शिंजो एबे के नेतृत्व में 32वें ओलम्पिक खेलों की तैयारियों की अपनी झलक पेश की। बाक ने इस दौरान रियो के मेयर एडवडरे पेस से ओलम्पिक झंडा लेकर टोक्यो की मेयर (गवर्नर) यूरीकी कोइके को सौंपा।

ब्राजील ने समापन समारोह में 60 हजार दर्शकों की मौजूदगी में अपनी रंगारंग सांस्कृति विविधता का परिचय दिया। उसे साथ ही अपने देश के संगीत, कला और नृत्य के महारथियों को श्रृद्धांजलि अर्पित की। इसी दौरान टोक्यो ने भी अपनी सांस्कृति विविधता का परिचय दिया और पूरी दुनिया को टोक्यो-2020 ओलम्पिक के लिए आमंत्रित किया।

बाक ने अपने संबोधन में कहा, “हम यहां मेहमान बनकर आए और दोस्त बनकर आपके साथ रहे। यह हमारे लिए जीवन भर नहीं भूलने वाला अनुभव रहेगा। दुनिया हमेशा से ब्राजील को एक शानदार मेजबान के तौर पर जानती है लेकिन रियो ओलम्पिक के बाद उसका विश्वास यकीन में बदल गया है। इस शानदार आयोजन के लिए आपका धन्यवाद रियो। अब मैं 31वें ओलम्पिक खेलों के समापन की घोषणा करता हूं। टोक्यों में मिलने के वादे के साथ।”

रियो में बीते 16 दिनों में दुनिया भर के 206 देशों और क्षेत्रों से आए 10 हजार से अधिक एथलीटों ने शानदार ओलम्पिक भावना के साथ अपने फन और हुनर का प्रदर्शन करते हुए अरबों लोगों का मनोरंजन किया।

अब ये खिलाड़ी अपने-अपने हिस्से आए पदकों के साथ वतन वापसी करेंगे और सफलता का जश्न मनाएंगे। जिनके हाथ सफलता नहीं लगी, वे हार का आकलन करेंगे और टोक्यो-2020 में फिर से अपनी श्रेष्ठता साबित करने का प्रयास करेंगे।

अमेरिका ने एक बार फिर ओलम्पिक खेलों में अपनी श्रेष्ठता साबित करते हुए सबसे अधिक 46 स्वर्ण जीते। वह एकमात्र देश रहा, जिसके पदकों की संख्या 100 के पार गई। अमेरिका ने कुल 121 पदक जीते। ब्रिटेन ने 27 स्वर्ण के साथ दूसरा और चीन ने 26 स्वर्ण के साथ तीसरा स्थान हासिल किया।

इस साल का खास आकर्षण शरणार्थी टीम रही, जिसने आईओसी के झंडे तले ओलम्पिक में हिस्सा लिया। पूरी दुनिया ने इस टीम को प्यार दिया और इसी प्यार और सम्मान की बदौलल इस टीम ने एक स्वर्ण और एक कांस्य हासिल किया तथा पदक तालिका में भारत जैसे कई देशों से ऊपर रही।

जहां तक भारत की बात है तो उसने इस साल कुल दो पदक जीते। एक रजत और एक कांस्य। रजत महिला बैडमिटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने जीता जबकि कांस्य महिला पहलवान साक्षी मलिक ने हासि किया। भारत ने लंदन में छह पदक जीते थे। रियो में कुल 78 देशो ने पदक जीते। भारत को इनमें से 69वां स्थान प्राप्त हुआ।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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