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गुजरात लायंस के खिलाफ साख बचाने उतरेंगे आरसीबी

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बेंगलुरु। इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के 10वें संस्करण में अब तक खेले गए आठ में से केवल दो मैचों में जीत हासिल करने वाली रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर खराब फॉर्म से गुजर रही है और ऐसे में आज वे एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में होने वाले मैच में गुजरात लायंस के खिलाफ अपनी साख बचाने उतरेंगे। कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाफ बल्लेबाजों के बुरी तरह विफल होने के बाद मंगलवार को बारिश के कारण रद्द हुए मैच ने आईपीएल-10 में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर की राह मुश्किल कर दी है। बेंगलोर के लिए हालांकि एकमात्र राहत की बात यह है कि गुरुवार को गुजरात लायंस के खिलाफ यह मैच वे अपने घर में खेलेंगे।

खराब फॉर्म से जूझ रही बेंगलोर के लिए पिछले दोनों मैच आईपीएल-10 में उसे बैकफुट पर धकेलने के लिए काफी हैं। अब उसकी नजरें गुजरात के खिलाफ होने वाले मैच पर टिकी हैं। बेंगलोर को अगर शीर्ष-4 में शामिल होना है तो उसे बाकी के बचे मैचों में से अधिकांश में जीत हासिल करनी होगी।

मेजबान टीम के लिए यह अच्छा मौका है, क्योंकि गुजरात की टीम भी इस समय खराब फॉर्म से जूझ रही है और आठ टीमों की अंकतालिका में सबसे नीचे है।

बेंगलोर की मजबूत बल्लेबाजी को देखते हुए गुजरात पर उसका पलड़ा भारी है। मेजबान टीम के बल्लेबाज गुजरात के अनुभवहीन और बिखरी हुई गेंदबाजी आक्रमण के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। हालांकि, बेंगलोर के गेंदबाजों सैमुएल बद्री, युजवेंद्र चहल, श्रीनाथ अरविंद, टाइमल मिल्स और एडम मिलने को भी अपने प्रदर्शन में सुधार की जरूरत है।

गुजरात की गेंदबाजी आस्ट्रेलिया के एंड्रयू टाई पर निर्भर है। टाई के अलावा युवा गेंदबाज बासिल थंपी ही एकमात्र गेंदबाजी हैं, जिन्होंने थोड़ा प्रभावित किया है। हरफनमौला खिलाड़ी रवींद्र जडेजा अब तक गुजरात के लिए कुछ खास नहीं कर पाए हैं।

गुजरात के लिए अब तक कप्तान रैना और न्यूजीलैंड के दिग्गज बल्लेबाज ब्रैंडन मैक्लम ही एक सकारात्मक पहलू रहे हैं। रैना ने आईपीएल-10 में अभी तक कुल 272 रन बनाए हैं तो वहीं मैक्कलम ने 264 रन बनाए हैं।

टीमें (संभावित) :-

गुजरात लायंस : सुरेश रैना (कप्तान), दिनेश कार्तिक, जेसन रॉय, ड्वायन स्मिथ, अक्षदीप नाथ, शुभम अग्रवाल, बासिल थंपी, चिराग सूरी, जेम्स फॉल्कनर, एरॉन फिंच, मनप्रीत गोनी, ईशान किशन, रवींद्र जडेजा, शादाबा जकाती, शिविल कौशिक, धवल कुलकर्णी, प्रवीण कुमार, ब्रैंडन मैक्लम, मुनाफ पटेल, प्रथम सिंह, प्रदीप सांगवान, जयदेव शाह, शैली शौर्य, नाथू सिंह, तेजस बारोका, एंड्रयू टाई और इरफान पठान।

रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर : विराट कोहली (कप्तान), शेन वॉटसन, क्रिस गेल, मंदीप सिंह, ट्रेविस हेड, केदार जाधव, युजवेंद्र चहल, स्टुअर्ट बिन्नी, टाइमल मिल्स, अनिकेत चौधरी, श्रीनाथ अरविंद, अबु नेचिम, तबरेज शम्सी, प्रवीण दुबे, इकबाल अब्दुल्ला, अक्षय कानेर्वार, क्रिस जोर्डन, विक्रमजीत मलिक, हर्षल पटेल, केन रिचर्डसन, सचिन बेबी, डेविड वीज, अब्राहम डिविलियर्स।

नेशनल

पहले फेज के वोटर ने बिगाड़ा मोदी का मूड

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पार्टीज के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।

जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18वीं लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।

शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकर टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।

फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्योंकि evm खुलने के पहले कोई नहीं जानता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।

दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-

2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा

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